यहाँ कोई नियम नहीं, कोई बंदिश नहीं, बस वही बोलिए जो आपके अन्दर है, क्योंकि आपके अन्दर है भारत कि असली तस्वीर, तो छोडिये बनावटीपन, और आज निकाल डालिए मन कि भड़ास, अपनी रचना भेजने, अपनी बात कहने के लिए हमें मेल करें. editor.bhadohinews@gmail.com

शनिवार, 16 जुलाई 2011

दोस्तों अब ये झंडा झुका दो

दोस्तों अब ये झंडा झुका दो

ये जो होता है सोचा नहीं था
ये बुरा खवाब अपना नहीं था
आदमी कैसे-कैसे बिक रहा है?
हमको अब कोई तो जवाब  दो
दोस्तों अब ये झंडा झुका दो...........

पेट बच्चों का भरने की खातिर
एक माँ ने अपनी अस्मत लुटाई है
हर एक खतरे की जद में
चाहे बहना हो या  चाहे भाई
अरे कोई  तो इनको बचा लो 
दोस्तों अब ये झंडा झुका दो............

कसाब है क्या !!!

                                                               भारतीय क़ानून व्यवस्था को ऐसा जटिल बना कर छोड़ दिया है कि बड़े से बड़ा अपराधी ( आज कल इस श्रेणी में अधिकाँश राजनैतिक पार्टियां भी शोभा बढ़ाने की हौड़ में जोर आजमाइस कर रही है !) आरामगाह (जिसे हम साधारण नागरिक जेल कहते हैं !) में शान-ओ-शौकत से अपनी सेहत सुधारने में लगा है.उस अपराधी को भली भांति मालुम है कि अनेक अनेक अनेक (जितनी भी बार 'अनेक' लिखो,कम ही पड़ता है !)  लोग उसके लिए दुआ माँगने की कतार में खड़े हैं.

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

कोन बनेगा राष्ट्रप्रेमी भाग १


मित्रो आज आपको हिंदुस्तान की आवाज  ईमेल ग्रुप से निचे दिए गए सवाल पूछे गए थे 

                                                
सवाल न. १:-हमारा राष्ट्रीय गीत कोनसा है और इसके रचियेता  कोन है. 

सवाल न. २:-हमारा राष्ट्रीय गान कोनसा है और इसके रचियेता  कोन है.   


और सही जवाब है 


जन गण मन, भारत का राष्ट्र गान है जो मूलतः बाँग्ला में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखा गया था । संविधान सभा ने जन-गण-मन को भारत के राष्ट्र-गान के रुप में २४ जनवरी, १९५० को अपनाया था       

वन्दे मातरम् भारत का राष्ट्रगीत है।
बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन 1882 में उनके उपन्यास ‘आनन्द मठ’ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के सन्यासी द्वारा गाया गया है । इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी।


 जिन्होंने सही जवाब भेजें है उनके नाम इस प्रकार है  

१:- अनामिका घटकजी
२:- विनायक शर्माजी
३:- राम प्रसाद जालानजी
४:- आदर्श कुमार पटेलजी
५:- महेश बारमाटे "माहीजी"
६:- दक्ष_राजाजी
७:- शिखा कौशिकजी
८:- हरीश शिंगजी 
९ :-  अभिषेक मिश्र जी  

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमा कहते हैं, नीचे जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं

सम्मानित स्वजन, हिंदुस्तान की आवाज़ द्वारा जीवनदायिनी माँ के बारे में लेखन प्रतियोगिता आयोजित की गयी थी, समय सीमा के अन्दर जो प्रविष्टियाँ आई उसे "हिंदुस्तान की आवाज़-आपकी धरोहर" में प्रकाशित किया जा रहा है. आप लोग ऐसी ही प्रतियोगिताओ में अपनी भागीदारी देकर आगे भी सहभागिता निभाते रहे. आप सभी को शुभकामना.
सबसे   खुशनसीब -- shikha p. kaushik 

औलाद जो सदा माँ के करीब  है ;
सारी दुनिया में वो ही खुशनसीब  है .

जिसको परवाह नहीं माँ के सुकून की ;
शैतान का वो बंदा खुद अपना रकीब है .

दौलतें माँ की दुआओं की नहीं सहेजता 
इंसान ज़माने में वो सबसे गरीब है .

जो लबों पे माँ के मुस्कान सजा दे 
दिन रात उस बन्दे के दिल में मनती ईद है .

माँ जो खफा कभी हुई गम-ए -बीमार हो गए ;
माँ की दुआ की हर दवा इसमें मुफीद है .

है शुक्र उस खुदा का जिसने बनाई माँ !
मुबारक हरेक लम्हा जब उसकी होती दीद है .
   
                         शिखा कौशिक 
माँ --- ARCHANA GANGWAR

जब  मै जागू  सारी  रात
लिए  गोद  अपनी  संतान
आंसू   लुढ़क आये  थे  गाल पर
जब  मै  सोचू   बस  ये  बात .

क्या  मेरी  माँ  भी  जागी  होगी
रात  आँखों   में  काटी  होगी
बड़े   जतन  से  पाला  होगा
अरमानो  से  ढाला  होगा …..

मुझे रोते जो सुन लिया होगा
हर काम को छोड़  दिया होगा

बाहों में भर लिया होगा
होंठो से चूम लिया होगा

अदाओं में बचपना लाके
मुझ को हंसा दिया होगा
--------------------------

मां ----राजेन्द्र स्वर्णकार
हृदय में पीड़ा छुपी तुम्हारे , मुखमंडल पर मृदु - मुसकान !
पलकों पर आंसू की लड़ियां , अधरों पर मधु - लोरी - गान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां ! तुम पर तन मन धन बलिदान !
तुम पर जग न्यौछावर माता ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान!! 
कष्ट मौत का सहजीवन देती कि नियम सृष्टि का पले !
मात्र यही अभिलाषा और आशीष कि बच्चे फूले - फले !
तेरी गोद मिली, वे धन्य हैं मां ! …क्या इससे बड़ा वरदान ?
तुम पर जग न्यौछावर माता ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान!!
तू सर्दी - गर्मी , भूख - प्यास सह' हमें बड़ा करती है मां !
तेरी देह त्याग तप ममता स्नेह की मर्म कथा कहती है मां !
ॠषि मुनि गण क्या , देव दनुज सब करते हैं तेरा यशगान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां !  स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान !!
भेदभाव माली क्या जाने , जिसने स्वयं ही बीज लगाए !
फल कर पेड़ ; फूल फल दे या केवल कंटक शूल चुभाए !
करुणा स्नेह आशीष सभी में बांटे  तुमने एक समान !
तुम पर जग न्यौछावर माता ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान!! 
तेरा जीवन - चरित निहार' स्वर्ग से पुष्प बरसते हैं मां !
तुम- सा क़द - पद पाने को स्वयं भगवान तरसते हैं मां !
चरण कमल छू'कर मां ! तेरे , धन्य स्वयं होते भगवान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां !  स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
राजस्थानी रचना मा ई मिंदर री मूरत
जग खांडो , अर ढाल है मा !
टाबर री रिछपाळ है मा !
जायोड़ां पर आयोड़ी
विपतां पर ज्यूं काळ है मा !
दुख - दरियाव उफणतो ; जग
वाळां आडी पाळ है मा !
मैण जिस्यो हिरदै कंवळो
फळ - फूलां री डाळ  है मा !
जग बेसुरियो बिन थारै
तूं लय अर सुर - ताल है मा !
बिरमा लाख कमाल कियो
सैंस्यूं गजब कमाल है मा !
लिछमी सुरसत अर दुरगा
था'रा रूप विशाल है मा !
मा ई मिंदर री मूरत
अर पूजा रो थाळ है मा !
जिण काळजियां तूंनीं ; बै
लूंठा निध कंगाल है मा !
न्याल ; जका मन सूं पूछै
- था'रो कांईं हाल है मा !
धन कुणसो था'सूं बधको ?
निरधन री टकसाल है मा !
राजेन्दर था'रै कारण
आछो मालामाल है मा !
           -राजेन्द्र स्वर्णकार       
©copyright by : Rajendra Swarnkar
राजेन्द्र स्वर्णकार
फ़ोन : 0151 2203369
मोबाइल : 09314682626

 हमने जब जब माँ को देखा -- Shalini kaushik

हमने जब जब माँ को देखा
   ख्याल ये मन में आया.
हमें बनाने को ही माँ ने
   मिटा दी अपनी काया.
बचपन में माँ हाथ पकड़कर
   सही बात समझाती
गलत जो करते आँख दिखाकर
   अच्छी डांट पिलाती.
माँ की बातों पर चलकर ही
   जीवन में सब पाया
हमें बनाने को ही माँ ने
  मिटा दी अपनी काया.
समय परीक्षा का जब आता
   नींद माँ की उड़ जाती
हमें जगाने को रात में
   चाय बना कर लाती
माँ का संबल पग-पग पर
   मेरे काम है आया.
हमें बनाने को ही माँ ने
  मिटा दी अपनी काया.
जीवन में सुख दुःख सहने की
  माँ ने बात सिखाई,
सबको अपनाने की शिक्षा
  माँ ने हमें बताई.
कठिनाई से कैसे लड़ना
  माँ ने हमें सिखाया.
हमें बनाने को ही माँ ने
  मिटा दी अपनी काया.
        शालिनी  कौशिक  
                  http://shalinikaushik2.blogspot.com

माँ के बारे मेँ जितना कहा जाये उतना ही कम है.....परमात्मा की अद्भुत अभिव्यक्ति है माँ।
ममता का सागर है माँ। इतनी विराट है माँ कि पिता की अलग से व्याख्या ही
नहीँ की जा सकती......
पिता भी उसी ममत्व मेँ समा जाते हैँ

प्रेम की पराकाष्ठा है माँ
सत्य तो यह है कि एक सीमा के बाद शब्द भी असमर्थ हो जाते हैँ.....माँ के
संबंध मेँ कहने को

बड़ी इच्छा है
मैँने कुछ पंक्तियाँ लिखी हैँ
 अपनी माँ को समर्पित.............
तेरा अनंत कैसे उपकार मैँ चुकाऊँ
भूला हूँ राह अपनी
घर लौट कैसे आऊँ

बस और क्या कहूँ......
शब्द हैँ असमर्थ

--
Adarsh kumar patel
www.adarsh000.blogspot.com
www.adarsh000-samadhan.blogspot.com
www.sahityasindhu.blogspot.com



 " माँ": एक अहसास : एक पूर्णता !

   
यह समझने की नितांत आवश्यकता है कि आखिर यह "माँ" है क्या ?
    माँ है जननी,माँ है पालिनी,माँ है दुलारिनी.माँ क्या नहीं है! माँ तो संतान की छाया है,माँ तो संतान की तस्वीर है,तकदीर है,तज़बीज़ है......
    ज़रा सोचिये, माँ नहीं तो हम कहाँ ? हम नहीं तो हमारा "अहम्" कहाँ ? अरे इसी अहम् के लिए तो जीते हैं हम !
    यह नक्की मान लें कि माँ का एक-एक अंश हमारे में है.क्या-क्या अलग कर सकते हैं हम ? सच्ची बात तो यही है कि कुछ भी नहीं...... "गीले में सोने और सूखे में सुलाने" की बातें तो पुरानी हो गयी है ना ! पर क्या ऐसी बातों को बदल सकते हैं हम ?
    अरे किसी मादा पशु के भी, अगर हम उसके जन्म लेते बच्चे के समय, पास से फटक  जाएँ तो वह "दिन में तारे" दिखा देती है. भला क्यों ?वह तो मूक पशु मात्र ही तो है ! परन्तु हम भूल रहे हैं कि वह "माँ" है !!!!
    पुरानी कहावत है कि माँ का एक रात का भी क़र्ज़ नहीं चुका सकते हैं हम.पर कोई माँ क़र्ज़ चुकाने का कहती भी है क्या ? अरे सिर्फ वह तो " फ़र्ज़ ही तो याद दिलाती है ना !!
     कहाँ हक की लड़ाई लड़ रहे हैं हम ! कर्तव्य की बातें तो हमें सुहाती ही नहीं !!!!
    आएये माँ की रक्षा का संकल्प करें.बदले में दुलार ही दुलार,आशीर्वाद ही आशीर्वाद ,प्यार ही प्यार ,पोषण ही पोषण..........

 जुगल किशोर सोमानी
 जयपुर
 

आप सभी को हार्दिक शुभकामना व बधाई. आपके सुखमय भविष्य की शुभकामनाओ सहित आपका -- हरीश सिंह 
 
 

रामलीला मैदान की घटना पर कोर्ट सख्त, पूछा 'FIR क्यों नहीं?'

योग गुरु बाबा रामदेव ने सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाया कि काले धन के मुद्दे पर धरने के दौरान उन पर तथा उनके समर्थकों पर पिछले माह रामलीला मैदान में आधी रात को जो ज्यादतियां की गईं, उसके पीछे केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर सख्त रुख अख्तियार करते हुए दिल्ली पुलिस से कई सवाल किए हैं। कोर्ट ने पूछा है कि बाबा के समर्थकों की शिकायत पर एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई? स्वामी रामदेव की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने अनुरोध किया कि गृह मंत्री को मामले में सफाई देने का निर्देश दिया जाए और उन्हें स्वयं पेश होने के लिए नोटिस जारी किया जाए। जस्टिस बी. एस. चौहान और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की पीठ ने कहा कि चार जून की इस घटना के बारे में दिल्ली पुलिस की प्रतिक्रिया मिल जाने के बाद ही वह इस अनुरोध पर विचार

करेगी। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 25 जुलाई की तारीख निर्धारित की।

जेठमलानी ने कहा कि योगगुरु ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विरोध करने के लिए जंतर मंतर नहीं जाने का निर्णय किया था। वह अपने समर्थकों के साथ रामलीला मैदान पर ही प्रदर्शन कर रहे थे और उसी दौरान पुलिस कार्रवाई की गई।

जेठमलानी ने कहा कि चिदंबरम को इस बात का जवाब देने के लिए तलब किया जाना चाहिए कि
यह निर्णय कब किया गया और पूरे मैदान को खाली कराने का निर्णय क्यों किया गया। इससे पूर्व पीठ ने दिल्ली पुलिस की ओर से पेश हुए सीनियर वकील हरीश साल्वे से कहा कि कुछ ऐसे मुद्दों पर प्रतिक्रिया दिए जाने की जरूरत है, जिन पर कानून लागू करने वाली एजेंसी ने मौन साध रखा है।

पीठ ने दिल्ली पुलिस से सवाल किया कि अधिकारियों द्वारा की गई ज्यादतियों के खिलाफ योगगुरु के समर्थकों की शिकायत पर एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई? न्यायालय ने कहा कि एक हलफनामा दाखिल कर इस मामले में सफाई दी जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछले वाले हलफनामे में यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि एक जून से तीन जून के बीच क्या हुआ। उसने कहा कि डीवीडी, चित्रों और दस्तावेजों से स्पष्ट तौर पर पता चलता है कि उस स्थल पर योगाभ्यास करवाया जा रहा था।

न्यायालय ने अधिकारियों से इस बात की सफाई देने के लिए कहा कि किस परिस्थिति के तहत उन्हें रामदेव का यह कार्यक्रम रोकना पड़ा था। पीठ ने इस बात पर भी सवाल उठाए कि पुलिस ने तम्बुओं से घेरी गई उस जगह से लोगों को बाहर निकालने के लिए आंसू गैस के गोलों और पानी की धार का इस्तेमाल किया।
By : mahabirparshad goel
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