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शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

भारत का विश्व पर ऋण (SWAMI VIVEKANAND)

सम्पूर्ण विश्व पर हमारी मातृभूमि का महान्‌ ऋण है । एक-एक देश को लें तो भी इस पृथ्वी पर दूसरी कोई जाति नहीं है, जिसका विश्व पर इतना ऋण है । जितना कि इस सहिष्णु एवं सौम्य हिन्दू का ! ‘‘निरीह हिन्दू'' कभी-कभी ये शब्द तिरस्कारस्वरुप प्रयुक्त होते है, किन्तु कभी किसी तिरस्कार-युक्त शब्द प्रयोग में भी कुछ सत्यांश रहना सम्भव हो तो वह इसी शब्द प्रयोग में है । यह ‘‘निरीह हिन्दू '' सदैव ही जगत्पिता की प्रिय संतान है ।

प्राचीन एवं अर्वाचीन कालों में शक्तिशाली एवं महान्‌ जातियों से महान्‌ विचारों का प्रादुर्भाव हुआ है । समय-समय पर आश्चर्यजनक विचार एक जाति से दूसरी के पास पहुंची हैं । राष्ट्रीय जीवन के उमड़ते हुए ज्वरों से अतीत में और वर्तमान काल में महासत्य और शक्ति के बीजों को दूर-दूर तक बिखेरा है । किन्तु मित्रो ! मेरे शब्द पर ध्यान दो । सदैव यह विचार-संक्रमण रणभेरी के घोष के साथ युद्धरत सेनाओं के माध्यम से ही हुआ है । प्रत्येक विचार को पहले रक्त की बाढ़ में डुबना पड़ा । प्रत्येक विचार को लाखों मानवो की रक्त-धारा में तैरना पड़ा । शक्ति के प्रत्येक शब्द के पीछे असंख्य लोगों का हाहाकार, अनाथों की चीत्कार एवं विधवाओं का अजस्र का अश्रुपात सदैव विद्यमान रहा । मुख्यतः इसी मार्ग से अन्य जातियों के विचार संसार में पहुंचे । जब ग्रीस का अस्तिव नहीं था । रोम भविष्य के अन्धकार के गर्भ में छिपा हुआ था, जब आधुनिक योरोपवासियों के पुरखे जंगल में रहते थे और अपने शरीरों को नीले रंगों में रंगा करते थे, उस समय भी भारत में कर्मचेतना का साम्राज्य था । उससे भी पूर्व, जिसका इतिहास के पास कोई लेखा नहीं जिस सुन्दर अतीत के गहन अन्धकार में झांकने का साहस परम्परागत किम्बदन्ती भी नहीं कर पाती, उस सुदूर अतीत से अब तक, भरतवर्ष से न जाने कितनी विचार-तरंगें निकली हैं किन्तु उनका प्रत्येक शब्द अपने आगे शांति और पीछे आशीर्वाद लेकर गया है । संसार की सभी जातियों में केवल हम ही हैं जिन्होंने कभी दूसरों पर सैनिक-विजय प्राप्ति का पथ नहीं अपनाया और इसी कारण हम आशीर्वाद के पात्र हैं ।


एक समय था-जब ग्रीक सेनाओं के सैनिक संचलन के पदाघात के धरती कांपा करती थी । किन्तु पृथ्वी तल पर उसका अस्तित्व मिट गया । अब सुनाने के लिए उसकी एक गाथा भी शेष नहीं । ग्रीकों का वह गौरव सूर्य-सर्वदा के लिए अस्त हो गया । एक समय था जब संसार की प्रत्येक उपभोग्य वस्तु पर रोम का श्येनांकित ध्वज उड़ा करता था । सर्वत्र रोम की प्रभुता का दबदबा था और वह मानवता के सर पर सवार थी पृथ्वी रोम का नाम लेते ही कांप जाती थी परन्तु आज सभी रोम का कैपिटोलिन पर्वत खण्डहारों का ढेर बना हुआ है, जहां सीजर राज्य करते थे वहीं आज मकड़ियां जाला बुनती हैं । इनके अतिरिक्त कई अन्य गौरवशाली जातियां आयीं और चली गयी, कुछ समय उन्होंने बड़ी चमक-दमक के साथ गर्व से छाती फुलाकर अपना प्रभुत्व फैलाया, अपने कलुषित जातीय जीवन से दूसरों को आक्रान्त किया; पर शीर्घ ही पानी के बुलबुलों के समान मिट गयीं । मानव जीवन पर ये जातियां केवल इतनी ही छाप डाल सकीं ।
किन्तु हम आज भी जीवित हैं और यदि आज भी हमारे पुराण-ऋषि-मुनि वापस लौट आये तो उन्हें आश्चर्य न होगा; उन्हें ऐसा नहीं लगेगा कि वे किसी नये देश में गए । वे देखेंगे कि सहस्रों वर्षो के अनुभव एवं चिन्तन से निष्पन्न वही प्राचीन विधान आज भी यहां विद्यवान है; अनन्त शताब्दियों के अनुभव एवं युगों की अभिज्ञता का परिपाक -वह सनातन आचार-विचार आज भी वर्तमान है, और इतना ही नहीं, जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, एक के बाद दूसरे दुर्भाग्य के थपेड़े उन पर आघातों करते जाते हैं । पर उन सब आघातों का एक ही परिणम हुआ है कि वह आचार दृढ़तर और स्थायी होते जाते हैं। किन्तु इन सब विधानों एंव आचारों का केन्द्र कहां है । किस हृदय में रक्त संचलित होकर उन्हे पुष्ट बना रहा है । हमारे राष्ट्रीय जीवन का मूल स्रोत है । इन प्रश्नों के उत्तर में सम्पूर्ण संसार के पर्यटन एवं अनुभव के पश्चात मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूं कि उनका केन्द्र हमारा धर्म है । यह वह भारत वर्ष है जो अनेक शताब्दियों तक शत शत विदेशी आक्रमणों के आक्रमणों के आघातों को झेल चुका है । यह ही वह देश है जो संसार की किसी भी चट्टान से अधिक दृढ़ता से अपने अक्षय पौरुष एवं अमर जीवन शक्ति के साथ खड़ा हुआ है । इसकी जीवन शक्ति भी आत्मा के समान ही अनादि, अनन्त एवं अमर है और हमें ऐसे देश की संतान होने का गौरव प्राप्त है ।

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डा. के कृष्णा राव
प्रांतीय संवाद प्रभारी
म.प्र. (पश्चिम)
09425451262

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

Old Photos-Vintage Photos of Temples

Photograph of a Temple in Trichinopoly (Tiruchirappalli) Tamil Nadu - 1890's
By. Kavita patel 
 

क्या आप सेक्युलर है ? Are you a secularist? -१

विश्व में लगभग ५२ मुस्लिम देश है, क्या कोई एक भी मुस्लिम देश है जो हज सब्सिडी देता है ?

२.   -  क्या एक भी मुस्लिम देश है , जहाँ हिन्दुओ का विशेष अधिकार है जैसा मुस्लिमो को भारत में दी जाती है ?

३.    -  एक भी मुस्लिम देश है जिसका राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री गैर मुसलमान हो ?

४.     -  बताए कि किसी एक मुल्ला या मैलावी ने आतंकवादियों के खिलाफ “ फतवे “ घोषित किये हो ?

५.     -  हिंदू बहुल बिहार, महाराष्ट्र केरल, पांडिचेरी आदि के मुख्यमंत्रियों के रूप में मुसलमान निर्वाचित है| क्या कभी एक हिंदू, मुस्लिम बहुल जम्मू और कश्मीर या ईसाई बहुल नागालैंड/मिजोरम के मुख्यमंत्री बनाने कि कल्पना कर सकता है ?

६.    -  मंदिरों के फंड मुसलमानों और ईसाईयों के कल्याण केल्लिये क्यों खर्च किया जाता है ? जब कि वे अपने पैसा मुक्त रूप से कही पर खर्च कर सकते है |

७.     -  क्यों गांधी जी ने खिलाफत आंदोलन (हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के साथ कुछ नहींका समर्थन किया है और क्या वह बदले में मिल गया?

८.    -  क्यों गाँधी जी ने कैबिनेट के निर्णय पर आपत्ति जताई की सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण सार्वजनिक धन से नही किया जायेगा ? जब कि १९४८ में नेहरू और पटेल को सरकारी खर्च पर दिल्ली के मस्जिदों के नवीनीकरण के लिए दबाव बनाया |

९.   - यदि मुसलमान और ईसाई महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि में अल्पसंखयक है तो हिंदू जम्मू और कश्मीर, मिजोरम, नागालैंड, अरुणांचल प्रदेश, मेधालय आदि में क्यों नही अल्पसंख्य है ? हिन्दुओ को इन राज्यों में अल्पसंख्य का अधिकार क्यों नही दिया जाता है ?

१०- घोधरा कांड को आंधी तूफ़ान कि तरह जब नही तब उडाया जाता है | जब कश्मीर से ४ लाख हिन्दुओ का सफाया किया गया | इसकी याद क्यों नही आती है ?

११- १९४७ में, जब भारत का विभाजन हुआ तो पाकिस्तान में हिन्दुओ कि जनसँख्या २४ % थी \ आज १% के बराबर नही है | पूर्वी पाकिस्तान ( बंगलादेश) में हिन्दुओ कि जनसँख्या ३०% थी, आज लगभग ७% है | लापता हिन्दुओ का क्या हुआ ? क्या हिन्दुओ के लिए मानवाधिकार नही है ?

१२- .  इसके विपरीत, भारत में मुस्लिम जनसँख्या १९५१ में १०.४% थी और आज १८% से ऊपर है | जबकि हिंदू कि जनसँख्या ८७.२०% थी जो २०११ में ८०% रह गयी है | क्या किसी राजनीतिक ने मुसलमानों से परिवार नियोजन के बारे कहा है ?

१.   -  क्या आप समझते है कि – संस्कृत सांप्रदायिक है और उर्दू धर्मनिरपेक्ष है ?, मंदिर सांप्रदायिक है और मस्जिद धर्मनिरपेक्ष है ?, साधू सांप्रदायिक है और इमाम धर्मनिरपेक्ष है ?, भाजपा सांप्रदायिक है और मुस्लिम लीग धर्मनिरपेक्ष है ?, वन्देमातरम सांप्रदायिक है और अल्लाह-हो-अकबर धर्मनिरपेक्ष है ?, श्रीमान सांप्रदायिक है और मियां धर्मनिरपेक्ष है ?, हिंदू सांप्रदायिक है और इस्लाम धर्मनिरपेक्ष है ?, हिंदुत्व सांप्रदायिक है और जिहादवाद धर्मनिरपेक्ष है ? और अंत में, भारत सांप्रदायिक है और इटली धर्मनिरपेक्ष है ?
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२.    - जब ईसाई और मुस्लिमो के स्कूलों में बाईबल और कुरान सिखाया जाता है तो हिन्दुओ के स्कूलों में गीता और रामायण क्यों नही सिखाया जा सकता है ?

३.    - अब्दुल रहमान अंतुले को प्रसिद्द सिद्धि विनायक मंदिर प्रभादेवी मुम्बई का  ट्रस्टी बनाया गया था | क्या एक हिंदू ( खासकर मुस्लायम या लालू ) कभी मस्जिद या मदरसा के ट्रस्टी बन सकते है ?
४.      - डॉ. प्रवीण तोगडिया को कमजोर आधार पर कई बार गिरफ्तार किया गया है | क्या जमा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी को जो आईएसआई होने का दावा और भारत विभाजन की वकालत करने वाले को कभी गिरफ्तार किया गया है ?

५.  - जब हज यात्रियों को सब्सिडी दी जाती है  तो हिंदू को अमरनाथ और कैलाश मानसरोवर तीर्थ यात्रा के लिए टैक्स क्यों ?
   
     By---- blogtaknik
 

अन्ना हजारे से सहमत हों या असहमत भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन जरूरी है



आज अन्ना हजारे और उनके भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन को लेकर कई सवाल उठाये जा रहे हैं। साहित्यकार मुद्राराक्षस ने (जनसंदेश टाइम्स, 4 जुलाई 2011) आरोप लगाया है कि अन्ना भाजपा व राष्ट्रीय सेवक संघ का मुखौटा हैं और अन्ना के रूप में इन्हें ‘आसान झंडा’ मिल गया है। जन लोकपाल समिति में ऐसे लोग शामिल हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। अन्ना हजारे की यह माँग कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में ले आया जाय, संविधान के विरुद्ध है। मुद्राराक्षस ने यहाँ तक सवाल उठाया है कि अन्ना और उनकी सिविल सोसायटी पर संसद और संविधान की अवमानना का मुकदमा क्यों न दर्ज किया जाय ? ऐसे में अन्ना हजारे और भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन की पड़ताल जरूरी है क्योंकि आज यह आन्दोलन अपने अगले चरण की ओर अग्रसर है और जन आंदोलन की शक्तियाँ वैचारिक और सांगठनिक तैयारी में जुटी हैं।

अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन ने देश की मुख्यधारा के राजनीतिक दलों को सवालों के कठघरे में खड़ा कर दिया है। हमारे संसदीय जनतंत्र में पक्ष और प्रतिपक्ष मिलकर मुख्य राजनीति का निर्माण करते हैं। लेकिन इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि तमाम पार्टियाँ सत्ता की राजनीतिक पार्टिर्यों में बदल गई हैं। उसके अर्थतंत्र का हिस्सा बनकर रह गई हैं। जनता की खबर लेने वाला, उसका दुख-दर्द सुनने व समझने वाला और उसके हितों के लिए लड़ने वाला आज कोई प्रतिपक्ष नहीं हैं। वास्तविक प्रतिपक्ष गायब है और इसने जो जगहें छोड़ी हैं, उसे  भरने के लिए सिविल सोसाइटी और जन आंदोलन की शक्तियाँ सामने आई हैं। अन्ना हजारे इसी यथार्थ की उपज हैं। 

इस आंदोलन में, अन्ना हजारे के व्यक्तित्व और विचार में कमियाँ और कमजोरियाँ मिल सकती हैं। वे गाँधीवादी हैं। खुद गाँधीजी अपने तमाम अन्तर्विरोधों के बावजूद  स्वाधीनता आन्दोलन के बड़े नेता रहे हैं। इसी तरह अन्ना हजारे के विचारों और काम करने के तरीकों में अन्तर्विरोध संभव है लेकिन इसकी वजह से उनके आन्दोलन के महत्व को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता है। इस आन्दोलन का सबसे बड़ा महत्व यही है कि इनके द्वारा उठाया गया भ्रष्टाचार का मुद््दा आज केन्दीय मुद्दा बन गया है जिसने समाज के हर तबके को काफी गहरे संवेदित किया है और इसे खत्म करने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटे हैं। अन्ना हजारे और उनके आंदोलन की इस उपलब्धि को क्या अनदेखा किया जा सकता है कि 42 सालों से सरकार के ठंढ़े बस्ते में पड़ा लोकपाल विधेयक बाहर आया, उसे मजबूत और प्रभावकारी बनाने की चर्चा हो रही है, और इस पर सर्वदलीय बैठक आयोजित हुई।

हमारे यहाँ ऐसे बुद्धिजीवियों की कमी नहीं जो हर आन्दोलनों से रहते तो दूर हैं, पर सूँघने की इनकी नाक बड़ी लम्बी होती है। हर ओर इन्हें साजिश ही नजर आती है। ये अन्ना द्वारा नरेन्द्र मोदी की तारीफ पर तो खूब शोर मचाते हैं, लेकिन इस सम्बन्ध में अन्ना ने जो सफाई दी, वह इन्हें सुनाई नहीं देता है। किसानों की आत्म हत्या, बहुराष्ट्रीय निगमों का शोषण, चालीस करोड़ से ज्यादा लोगों का गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन के लिए बाध्य किया जाना जैसे मुद्दे तो इन्हें संवेदित करते हैं लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जब प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की बात आती है तो वह उन्हें देश में आजादी के बाद पहली बार अल्पसंख्यक सिख समुदाय के प्रधानमंत्री को अपमानित करने का षडयंत्र नजर आता है। अपनी बौखलाहट में ये अन्ना और सिविल सोसाइटी पर जाँच बैठा कर मुकदमा चलाने की माँग करते हैं। ये इस सच्चाई को भुला बैठते हैं कि प्रधानमंत्री किसी समुदाय विशेष का न होकर वह सरकार का प्रतिनिधि होता है। हमारे इन बौद्धिकों को अन्ना द्वारा किसान आत्महत्याओं पर भूख हड़ताल न करने पर शिकायत है लेकिन किसान आंदोलनों पर सरकार के दमन पर ये चुप्पी साध लेते हैं।

हकीकत यह है कि भ्रष्टाचार पूँजीवाद की देन है और खासतौर से 1990 के बाद सरकार ने जिन उदारवादी आर्थिक नीतियों पर अमल किया है, उसी का परिणाम है। यह पूँजीवाद लूट और दमन की व्यवस्था है। इसलिए अगर भ्रष्टाचार मिटाना है तो हमें पूँजीवाद और अमीरपरस्त सरकारी नीतियों के विरुद्ध व्यापक आंदोलन और जागरण का अभियान चलाने की जरूरत है। यही वह जगह है जहाँ भाजपा जैसे दलों के लिए स्पेस नहीं रह जाता है। इस मामले में भाजपा काँग्रेस से बहुत अलग नहीं है। भले ही आज आन्दोलन से तात्कालिक लाभ बटोरने  के लिए भाजपा जैसे दल अन्ना को समर्थन दे रहे हों तथा भ्रष्टाचार को लेकर आंदोलित हों लेकिन जैसे जैसे आंदोलन अपने तीखे रूप में आगे बढ़ेगा, इन्हें हम आंदोलन से बाहर ही देखेंगे।

कहा जा रहा है कि अन्ना हजारे जिस लोकपाल को लाना चाहते हैं, वह संसद और सविधान की अवमानना है। पर सच्चाई क्या है ? हमारी सरकार कहती है कि यहाँ कानून का राज है। लेकिन विडम्बना यह है कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए हमारे यहाँ कोई मजबूत कानून की व्यवस्था नहीं है। मामला चाहे बोफोर्स घोटाले का हो या भोपाल गैस काँड का या पिछले दिनों के तमाम घोटालों का हो, इसने हमारे कानून की सीमाएँ उजागर कर दी हैं। तब तो एक ऐसी संस्था का होना हमारे लोकतंत्र के बने रहने के लिए जरूरी है। यह संस्था जनता का लोकपाल ही हो सकती है जिसके पास पूरा अधिकार व क्षमता हो और वह सरकार के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त व स्वतंत्र हो तथा जिसके दायरे में प्रधानमंत्री से लेकर सारे लोगों को शामिल किया जाय। 

प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की बात को लेकर मतभेद है लेकिन अतीत में प्रधानमंत्री जैसे पद पर जब अंगुली उठती रही है तब तो यह और भी जरूरी हो जाता है। सर्वदलीय बैठक में कई दलों के प्रवक्ता ने प्रधानमंत्री को इस दायरे में लाने की बात कही है और स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी उनसे मिलने गये सम्पादकों से कहा कि वे लोकपाल के दायरे में आने को तैयार हैं। फिर समस्या क्या है ? हमारा संविधान भी कोई अपरिवर्तनीय दस्तावेज नहीं है। अगर भ्रष्टाचार कैसर जैसी असाध्य बीमारी का रूप ले चुका है तो उसका उपाय भी तो उसी स्तर पर करना होगा। ऐसे में सांसदो और राजनीतिक दलों की नैतिकता दांव पर है और सारे देश का ध्यान इस ओर है कि मानसून सत्र में देश का संसद लोकपाल विधेयक पर क्या रुख अपनाता है। इसके पास भ्रष्टाचार से लड़ने की इच्छा शक्ति है या नहीं ?

अन्त में, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लम्बी है। मजबूत और प्रभावकारी लोकपाल का गठन इसका पहला चरण हो सकता है। हम अन्ना हजारे से सहमत हो सकते है, असहमत हो सकते हैं या उनके विरोधी हो सकते है लेकिन यदि हम समझते है कि भ्रष्टाचार हमारे राष्ट्र, समाज, जीवन, राजनीति, अर्थव्यवस्था और संस्कृति को दीमक की तरह चाट रहा है तो समय की माँग है कि इस संघर्ष को अन्ना हजारे और उनके चन्द साथियों पर न छोड़कर देश के जगरूक नागरिक, देशभक्त, बुद्धिजीवी, ईमानदार राजनीतिज्ञ, लोकतांत्रिक संस्थाएँं, जन संगठन आगे आयें और इसे व्यापक जन आंदोलन का रूप दें।

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KAUSHAL KISHOR

CONVENOR
JAN SANSKRITI MANCH
LUCKNOW

बिकाऊ है भारत सरकार, खरीदोगे?

 

पहले आयकर विभाग में काम किया करता था। 90 के दशक के अंत में आयकर विभाग ने कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों का सर्वे किया। सर्वे में ये कंपनियां रंगे हाथों टैक्स की चोरी करते पायी गयीं, उन्होंने सीधे अपना जुर्म कबूल किया और बिना कोई अपील किये सारा टैक्स जमा कर दिया। अगर ये लोग किसी और देश में होते तो अभी तक उनके वरिष्ठ अधिकारियों को जेल भेज दिया गया होता। ऐसी ही एक कम्पनी पर सर्वे के दौरान उस कम्पनी के विदेशी मुखिया ने आयकर टीम को धमकी दी - 'भारत एक बहुत गरीब देश है। हम आपके देश में आपकी मदद करने आये हैं। आपको पता नहीं हम कितने ताकतवर हैं। हम चाहें तो आपकी संसद से कोई भी कानून पारित करा सकते हैं। हम आप लोगों का तबादला भी करा सकते हैं।' इसके कुछ दिन बाद ही इस आयकर टीम के एक हेड का तबादला कर दिया गया।

उस वक्त मैंने उस विदेशी की बातों पर ज्यादा गौर नहीं किया। मैंने सोचा कि शायद वो आयकर सर्वे से परेशान होकर बोल रहा था, लेकिन पिछले कुछ सालों से मुझे धीरे-धीरे उसकी बातों में सच्चाई नजर आने लगी है।

जुलाई 2008 में यूपीए सरकार को संसद में अपना बहुमत साबित करना था। खुलेआम सांसदों की खरीद-फरोख्त चल रही थी। कुछ टीवी चैनलों ने सांसदों को पैसे लेकर खुलेआम बिकते दिखाया। उन तस्वीरों ने इस देश की आत्मा को हिला दिया। अगर सांसद इस तरह से बिक सकते हैं तो हमारे वोट की क्या कीमत रह जाती है। मैं जिस किसी सांसद को वोट करूं, जीतने के बाद वह पैसे के लिए किसी भी पार्टी में जा सकता है। दूसरे, आज अपनी सरकार बचाने के लिए इस देश की एक पार्टी उन्हें खरीद रही है। कल को उन्हें कोई और देश भी खरीद सकता है। जैसे अमेरिका, पाकिस्तान इत्यादि। हो सकता है ऐसा हो भी रहा हो, किसे पता? यह सोच कर पूरे शरीर में सिहरन दौड़ पड़ी- क्या हम एक आजाद देश के नागरिक हैं? क्या हमारे देश की संसद सभी कानून इस देश के लोगों के हित के लिए ही बनाती है?

अभी कुछ दिन पहले जब अखबारों में संसद में हाल ही में प्रस्तुत न्यूक्लियर सिविल लायबिलिटी बिल के बारे में पढ़ा तो सभी डर सच साबित होते नजर आने लगे। यह बिल कहता है कि कोई विदेशी कम्पनी भारत में अगर कोई परमाणु संयंत्र लगाती है और यदि उस संयंत्र में कोई दुर्घटना हो जाती है तो उस कम्पनी की जिम्मेदारी केवल 1500 करोड़ रुपये तक की होगी। दुनियाभर में जब भी कभी परमाणु हादसा हुआ तो हजारों लोगों की जान गयी और हजारों करोड़ का नुकसान हुआ।

भोपाल गैस त्रासदी में ही पीड़ित लोगों को अभी तक 2200 करोड़ रुपया मिला है जो कि काफी कम माना जा रहा है। ऐसे में 1500 करोड़ रुपये तो कुछ भी नहीं होते। एक परमाणु हादसा न जाने कितने भोपाल के बराबर होगा? इसी बिल में आगे लिखा है कि उस कम्पनी के खिलाफ कोई आपराधिक मामला भी दर्ज नहीं किया जायेगा और कोई मुकदमा नहीं चलाया जायेगा। कोई पुलिस केस भी नहीं होगा। बस 1500 करोड़ रुपये लेकर उस कम्पनी को छोड़ दिया जायेगा।

यह कानून पढ़कर ऐसा लगता है कि इस देश के लोगों की जिन्दगियों को कौड़ियों के भाव बेचा जा रहा है। साफ-साफ जाहिर है कि यह कानून इस देश के लोगों की जिन्दगियों को दांव पर लगाकर विदेशी कम्पनियों को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। हमारी संसद ऐसा क्यों क्यों रही है? यकीनन या तो हमारे सांसदों पर किसी तरह का दबाव है या कुछ सांसद या पार्टियां विदेशी कम्पनियों के हाथों बिक गयी हैं।

भोपाल गैस त्रासदी के हाल ही के निर्णय के बाद अखबारों में ��ेरों खबरें छप रही हैं कि किस तरह भोपाल के लोगों के हत्यारे को हमारे देश के उच्च नेताओं ने भोपाल त्रासदी के कुछ दिनों के बाद ही राज्य अतिथि सा सम्मान दिया था और उसे भारत से भागने में पूरी मदद की थी।

इस सब बातों को देखकर मन में प्रश्न खड़े होते हैं- क्या भारत सुरक्षित हाथों में है? क्या हम अपनी जिन्दगी और अपना भविष्य इन कुछ नेताओं और अधिकारियों के हाथों में सुरक्षित देखते हैं?

ऐसा नहीं है कि हमारी सरकारों पर केवल विदेशी कम्पनियों या विदेशी सरकारों का ही दबाव है। पैसे के लिए हमारी सरकारें कुछ भी कर सकती हैं। कितने ही मंत्री और अफसर औद्योगिक घरानों के हाथ की कठपुतली बन गये हैं। कुछ औद्योगिक घरानों का वर्चस्व बहुत ज्यादा बढ़ गया है। अभी हाल ही में एक फोन टैपिंग मामले में खुलासा हुआ था कि मौजूदा सरकार के कुछ मंत्रियों के बनने का निर्णय हमारे प्रधानमंत्री ने नहीं बल्कि कुछ औद्योगिक घरानों ने लिया था। अब तो ये खुली बात हो गयी है कि कौन सा नेता या अफसर किस घराने के साथ है। खुलकर ये लोग साथ घूमते हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कुछ राज्यों की सरकारें और केन्द्र सरकार के कुछ मंत्रालय ये औद्योगिक घराने ही चला रहे हैं।

यही कारण है कि हमारे देश की खदानों को इतने सस्ते में इन औद्योगिक घरानों को बेचा जा रहा है। जैसे आयरन ओर की खदानें लेने वाली कम्पनियां सरकार को महज 27 रुपये प्रति टन रॉयल्टी देती हैं। उसी आयरन ओर को ये कम्पनियां बाजार में 6000 रुपये प्रति टन के हिसाब से बेचती हैं। क्या यह सीधे-सीधे देश की सम्पत्ति की लूट नहीं है?

इसी तरह से औने-पौने दामों में वनों को बेचा जा रहा है, नदियों को बेचा जा रहा है, लोगों की जमीनों को छीन-छीन कर कम्पनियों को औने-पौने दामों में बेचा जा रहा है।

इन सब उदाहरणों से एक बात तो साफ है कि इन पार्टियों, नेताओं और अफसरों के हाथ में हमारे देश के प्राकृतिक संसाधन और हमारे देश की सम्पदा खतरे में है। जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो ये लोग मिलकर सब कुछ बेच डालेंगे।

इन सब को देखकर भारतीय राजनीति और जनतंत्र पर एक बहुत बड़ा सवालिया निशान लगता है। सभी पार्टियों का चरित्र एक ही है। हम किसी भी नेता या किसी भी पार्टी को वोट दें, उसका कोई मतलब नहीं रह जाता।

पिछले 60 सालों में हम हर पार्टी, हर नेता को आजमा कर देख चुके हैं। लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। इससे एक चीज तो साफ है कि केवल पार्टियाँ और नेता बदल देने से बात नहीं बनने वाली। हमें कुछ और करना पड़ेगा।

हम अपने संगठन परिवर्तन के जरिये पिछले दस सालों में विभिन्न मुद्दों पर काम करते रहे हैं। कभी राशन व्यवस्था पर, कभी पानी के निजीकरण पर, कभी विकास कार्यों में भ्रष्टाचार को लेकर इत्यादि। आंशिक सफलता भी मिली। लेकिन जल्द ही यह आभास होने लगा कि यह सफलता क्षणिक और भ्रामक है। किसी मुद्दे पर सफलता मिलती जब तक हम उस क्षेत्र में उस मुद्दे पर काम कर रहे होते, ऐसा लगता कि कुछ सुधार हुआ है।

जैसे ही हम किसी दूसरे मुद्दे को पकड़ते, पिछला मुद्दा पहले से भी बुरे हाल में हो जाता। धीरे-धीरे लगने लगा कि देश भर में कितने मुद्दों पर काम करेंगे, कहां-कहां काम करेंगे। धीरे-धीरे यह भी समझ में आने लगा कि इस सभी समस्याओं की जड़ में ठोस राजनीति है। क्योंकि इन सब मुद्दों पर पार्टियां और नेता भ्रष्ट और आपराधिक तत्वों के साथ हैं और जनता का किसी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं है। मसलन राशन की व्यवस्था को ही लीजिए। राशन चोरी करने वालों को पूरा-पूरा पार्टियों और नेताओं का संरक्षण है। यदि कोई राशन वाला चोरी करता है तो हम खाद्य कर्मचारी या खाद्य आयुक्त या खाद्य मंत्री से शिकायत करते हैं। पर ये सब तो उस चोरी में सीधे रूप से मिले हुए हैं। उस चोरी का एक बड़ा हिस्सा इन सब तक पहुंचता है। तो उन्हीं को शिकायत करके क्या हम न्याय की उम्मीद कर सकते हैं। यदि किसी जगह मीडिया का या जनता का बहुत दबाव बनता है तो दिखावे मात्र के लिए कुछ राशन वालों की दुकानें निरस्त कर दी जाती हैं। जब जनता का दबाव कम हो जाता है तो रिश्वत खाकर फिर से वो दुकानें बहाल कर दी जाती हैं।

इस पूरे तमाशे में जनता के पास कोई ताकत नहीं है। जनता केवल चोरों की शिकायत कर सकती है कि कृपया अपने खिलाफ कार्रवाई कीजिए। जो होने वाली बात नहीं है।


सीधे-सीधे जनता को व्यवस्था पर नियंत्रण देना होगा जिसमें जनता निर्णय ले और नेता व अफसर उन निर्णयों का पालन करें। क्या ऐसा हो सकता है? क्या 120 करोड़ लोगों को कानूनन निर्णय लेने का अधिकार दिया जा सकता है?

वेसे तो जनतंत्र में जनता ही मालिक होती है। जनता ने ही संसद और सरकारों को जनहित के लिए निर्णय लेने का अधिकार दिया है। संसद, विधानसभाओं और सरकारों ने इस अधिकारों का जमकर दुरुपयोग किया है। उन्होंने पैसे खाकर खुलेआम और बेशर्मी से जनता को और जनहित को बेच डाला है और इस लूट में लगभग सभी पार्टियाँ हिस्सेदार हैं। क्या समय आ गया है कि जनता नेताओं, अफसरों और पार्टियों से अपने बारे में निर्णय लेने के अधिकार वापस ले ले?

समय बहुत कम है। देश की सत्ता और देश के साधन बहुत तेजी से देशी-विदेशी कम्पनियों के हाथों में जा रहे हैं। जल्द कुछ नहीं किया गया तो बहुत देर हो चुकी होगी। आपको पता होगा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून बनाने के लिए पूरे देश में आंदोलन जारी है। जन लोकपाल नामक इस कानून से भ्रष्टाचार नियंत्रण में काफी मदद मिलेगी। जनता के इस कानून को बनाने के लिए सरकार पर दबाव डालने के लिए समाजसेवी अन्ना हजारे 5 अप्रैल से दिल्ली में जंतर-मंतर पर आमरण अनशन पर बैठ गए। दिल्ली और देश-विदेश के सैकड़ों शहरों में लाखों लोगों ने भी उनके साथ अनशन किया। आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा और बिल पर जॉइंट कमिटी की मांग माननी पड़ी। लेकिन यह लड़ाई अभी जारी है, हमें जन लोकपाल बिल संसद में भी पास कराना है इसलिए जरूरी है कि हम एकजुट रहें।


        अरविंद केजरीवाल

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

भारतीय लोकतंत्र की वर्तमान विकट परिस्थितियां

वर्तमान समय भारतीय लोकतंत्र का संकर्मण काल  कहा जा सकता है. लोकतंत्र की इस व्यवस्था ने देश को आकंठ भ्रष्टाचार , बेहद गरीबी , बेरोजगारी , मुक्त भोग विलासिता , भोंडे तरीकों से जीने की वासना में डुबो दिया है. कहीं अपनापन , राष्ट्रीयता , सद्भावना नज़र ही नहीं आ रही है. पूरा देश स्वार्थ , लालच , दोगलापन , वीभत्स मानसिकता के चंगुल में फंस गया है. चारों  तरफ  "अपनी" ही लगी हुई है. निकृष्ट आकांक्षाओं की भूख ने सबको मौकापरस्त , खुदगर्ज़ , शैतानी दिमाग से कमाए धन का लोलुप बना दिया.
     अब सोचने की बात यह है कि हम ऐसा क्योंकर सोचने लग गए कि इन दुश्भावनाओं के पीछे हमारा लोकतंत्र जिम्मेदार है ? नहीं , लोकतंत्र जिम्मेदार नहीं बल्कि आज इस तंत्र के जो पहरुए हैं , जो अपने आप को इस देश के भाग्य विधाता समझ बैठें हैं , इन लोगों ने एक ऐसे जाल का निर्माण कर डाला जिसमें हमारा यह पवित्र लोकतंत्र , इसके जनक (हमारी यह भारतीय जनता) फांस दिए गए. आज देश की एक भी ऐसी राजनैतिक पार्टी नहीं है जो अपने व अपने कार्यकर्ताओं को पाक - साफ़ बता सके. सब के सब गन्दे कीचड़ से सने पड़े हैं ,कालिख ही कालिख पोत रखी है , असली चेहरा तो नज़र ही नहीं आ रहा है , सब मुखोटों की ओट  में छिपे देश की निरीह जनता को लोकतंत्र के नाम से ठगने का व्यापार कर रहे हैं.
     आज जन जागरण की आवश्यकता है . महान भारत का इतिहास गवाह है कि इस देश में धर्म - आध्यात्म का ही एक ऐसा बल था जो सम्पूर्ण धरा पर देशप्रेम , ईमानदारी , सुहृदयता, अपनापन , भाई चारा , माता - पिता - गुरु का सम्मान , परिवार - पालन की सात्विकता ,"तंत्र" के प्रति जवाबदेह होने की प्रेरणा प्रदान करता आया है. पहले राज तंत्र था - उसकी अच्छाइयों को भी मान मिलता था तो बुराइयों का विरोध भी होता था . मगर यह विरोध कुल गुरु , धर्म गुरु या ऋषि - मुनियों के सानिध्य में मुखर होता था. भगवान परशुराम , आचार्य चाणक्य इस के सशक्त उदाहरण है.
      परन्तु न जाने क्या समझ कर इस देश को "धर्म निरपेक्ष" शब्द दे दिया गया , मैं समझता हूँ वह समय लोकतंत्र के ऊपर पहला घातक वार था, जिस वक्त यह दूषित निर्णय लिया गया था. फिर तो एक दौर चल पड़ा - आरोपों / आक्षेपों का. जो भी नीति नियामक बात कहे या व्यवहार करें वही "साम्प्रदायिक" . इस साम्प्रदायिक शब्द ने लोकतंत्र की काया पर वार पर वार किये. साधू भगवा पहनता है तो साम्प्रदायिक , मुसलमान सड़क पर नमाज़ पढ़ता है तो साम्प्रदायिक , पाठ्य पुस्तकों में पौराणिक नीति संबंधी विषय जोड़ दे तो साम्प्रदायिक , वन्दे मातरम या भारत माता के जय बोल दे तो साम्प्रदायिक , धार्मिक - आध्यात्मिक वार्ता करें तो.........ऐसा दौर चला कि यह हमारा लोकतंत्र घायल होता ही गया........परन्तु अब इसे दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य यह लोकतंत्र महादेव शिव शम्भू से "अमर कथा" सुन बैठा....अब अमर हो जाने के कारण मर तो सकता नहीं सो बेचारा घायल होता गया , कराहता गया ,रोता गया........आज भी यह क्रम जारी है. सनद रहे - भगवान महेश्वर "लोकतंत्र" के सबसे सटीक व सशक्त उदाहरण है. यही एक ऐसा परिवार है जिसमें शेर , बैल , सांप -बिच्छु , चूहा , मौर सबका समावेश है.सब जानते हैं कि इन सभी प्राणियों में जातीय दुश्मनी है पर फिर भी एक ही परिवार में प्रेम से रह लेते हैं ( अब मेरी इस बात को भी साम्प्रदायिक न कह दें)
       लोक यानि जनता का यह तंत्र मरा नहीं है , मर सकता भी नहीं , अमरता का वरदान जो मिला हुआ है , इस महान तंत्र को स्वस्थ , बलशाली , पोषक , सिरमौर बनाना है तो इस सनातन देश के आध्यात्म को सर्वोच्च शिखर पर स्थापित करना होगा . समस्त धर्म गुरुओं को अपने अपने धर्म की "वास्तविकताओं" को अपने अनुयाइयों के मध्य प्रचारित - प्रसारित (सही -सही - ईमानदारी पूर्वक) करना होगा. ध्यान रहे यह "आध्यात्म" शब्द प्रत्येक धर्म में विद्यमान है , हाँ , हो सकता है कि नाम अलग अलग हो .
     एक बात चेतावनी पूर्वक कहना चाहूँगा - अगर अब भी यह "साम्प्रदायिक" शब्द जीवित रहा तो वह दिन दूर नहीं जब यह कहा जाएगा कि सूरज गर्म धूप और चन्द्रमा शीतलता की रोशनी क्यों दे रहे है , अग्नि जला क्यों रही है , जल प्यास क्यों बुझा रहा है , वायू प्राणों का संचार क्यों कर रहे है.......... ये सब साम्प्रदायिक हैं , हटाओ इनको......
ब्रह्माण्ड में कोई  अणु भी  धर्म निरपेक्ष तो हो ही नहीं सकता , सबके अपने अपने कर्त्तव्य है , जिम्मेदारी है . फिर भला हमारा प्यारा भारत कैसे धर्म निरपेक्ष हो गया !!!! हमें अपनी इस भयंकर भूल को सुधारना ही होगा , फिर देखिये हमारे इस अमर लोकतंत्र के जलवे...............
जुगल किशोर सोमाणी , जयपुर

दिलचस्प साक्षात्कार ।

(म्यूज़िक- ढें..टें..ने..ण..!!)

आर.जे.(रॅडियो जॉकी।),"  प्यारे दोस्तों, आज हमारे बीच उपस्थित है,
`पुरुष-प्रधान विवाह-विचारधारा` के कट्टर विरोधी, आजीवन कुँवारी, अखिल
भारतीय विवाह विरोधी संगठन की एकमात्र ऍक्टिविस्ट बहन
सुश्री......!!...........,बहन जी, हमारे, `४२० F.M. रेडियो स्टेशन` पर
आपका दिल से स्वागत है ।"

बहन, " धन्यवाद ।"

R.J.-" अच्छा आप पहले ये बताइए कि,आप के `विवाह विरोधी संगठन` में, आज की
डेट में, कितने सदस्य है?"

बहन,(ऊँगलियां गिनते हुए..!!),"ट्रेड सिक्रेट, नो कमेन्ट्स..!!"

R.J.-" दूसरा सवाल, आपकी  पति-विरोधी नज़र से, किसी विवाहित नारी के जीवन
में,अपने पति की क्या क़ीमत होनी चाहिए?"

बहन," ZERO-शून्य-कुछ भी नहीं..!! सारे पति देव उल्लु जैसे ही बुद्धिहीन
होते हैं, इसीलिए तो मैं, हरेक नारी को शादी करने से पहले सौ बार सोचने
की सलाह देती हूँ । नारी मुक्ति ज़ि..दा..बा..द..!!"

R.J. (चिढ़ते हुए )-" क्यों..!! आप किस आधार पर,  `उल्लु` का उप-नाम
देकर, सारे पुरूष पर  इतना बड़ा इल्ज़ाम लगा रही है?"

बहन," सीधी सी बात है..!! पूरा दिन पत्नी की दुनियाभर की बुराईयाँ करने
वाले पति देव को, रात ढलते ही, घने अंधेरे में भी, अपनी पत्नी में,`उल्लु
की भाँति`, दुनियाभर के सद्गुण, नज़र आने लगते हैं?"

R.J.-" पर बहन जी, पत्नी पर भी, ऐसे आरोप लगते ही हैं कि,पति बेचारा पूरा
दिन मेहनत करके रुपया कमाता है और पत्नी, शॉपिंग के बहाने, शॉपिंग-मोल
में जाकर, उसे  फ़िजूल-खर्च कर देती है?"

बहन," फ़िजूल चीज़ो का शॉपिंग करना, सभी पत्नीओं का जन्मसिद्ध अधिकार है,
उस पर कोई पाबंदी नहीं लगा सकता..!!"

R.J.-"ठीक है, अगला प्रश्न । विवाह-विरोधी संगठन गठित करने की प्रेरणा,आप
को  कहाँ से मिली?"

बहन," मेरे घर में, मेरी माता जी से..!!"

R.J.-" आप की माता जी, शादीशुदा थीं?

बहन,(गुस्सा होकर)" कौन से शास्त्र में लिखा है, एक स्त्री ग़लती करें
तो, दूसरी स्त्री को भी, उस ग़लती को दोहराना चाहिए?"

R.J.-" समझ गया..!! अच्छा बहन, आप के किसी प्रशंसक पुरूष का कॉल है, क्या
आप उनके प्रश्न का जवाब देना चाहेंगी? महाशय, ज़रा आपका नाम और प्रश्न
बतायेंगे?"

कॉलर पुरूष," मेरा नाम.....है । मैं आपका एक्स प्रेमी हूँ और आज भी आपसे
बहुत प्रेम करता हूँ, मुझे पहचाना? मैं,....करोड़पति श्री....., का
इकलौता बेटा? आपके साथ कॉलेज में? बहुत साल पहले ? मैंने आपको, एक प्रेम
पत्र भेजा था..!! मैंने अभी तक शादी नहीं की..!! क्या  आप मुझ से लीव-इन-
रिलेशनशिप बनाएगी?"

बहन," अ...बे, सा..आ..ल्ले..!! इतने साल,  मुझे छोड़ कर, कहाँ ग़ायब हो
गया था?  मैं तुमसे, अभी और इसी वक़्त मिलना चाहती हूँ..!! इस वक़्त तुम
कहाँ हो?"

कॉलर," डार्लिंग,मैं इस वक़्त, तेरा रेडियो प्रोग्राम ख़त्म होने की
प्रतीक्षा में, रेडियो स्टेशन के बाहर ही खड़ा  हूँ..!!"

बहन," य..स, य..स, स्टे धेर, आय एम जस्ट कमिंग..!! मैं तुम से अभी, इसी
वक़्त, शादी करना चाहती हूँ..!!"

R.J.-(हैरानगी जताते हुए)" पर, बहन जी, अपने आज के इस रोचक साक्षात्कार
का क्या होगा? और फिर आप के विवाह विरोधी आंदोलन का क्या होगा? आप के
उकसाने पर, आप के संगठन से जुड़ी हुई, बाकी महिला सदस्यों का भविष्य क्या
होगा?"

बहन," नॉ कमेन्ट्स..!! ये ले तेरा माइक..!! मैं तो चली, मेरे डार्लिंग के
पास..!! बा..य,बा..य?"

आधुनिक बोध-   अपने किसी निर्णय पर, बहने, सदा अटल रहती है, ऐसा मानने की
भूल, किसी पुरूष को हरगिज़ नहीं करनी चाहिए..!!

मार्कण्ड दवे । दिनांक-०४-०७-२०११.

सोमवार, 4 जुलाई 2011

विदुर नीति और चाणक्य निति ||

नीति विशारद विदुर जी कहते हैं कि जो अपने स्वभाव के विपरीत कार्य करते हैं वह कभी नहीं शोभा पाते। गृहस्थ होकर अकर्मण्यता और सन्यासी होते हुए विषयासक्ति का प्रदर्शन करना ठीक नहीं है।
अल्पमात्रा में धन होते हुए भी कीमती वस्तु को पाने की कामना और शक्तिहीन होते हुए भी क्रोध करना मनुष्य की देह के लिये कष्टदायक और कांटों के समान है।
किसी भी कार्य को प्रारंभ करने पहले यह आत्ममंथन करना चाहिए कि हम उसके लिये या वह हमारे लिये उपयुक्त है कि नहीं। अपनी शक्ति से अधिक का कार्य और कोई वस्तु पाने की कामना करना स्वयं के लिये ही कष्टदायी होता है।
न केवल अपनी शक्ति का बल्कि अपने स्वभाव का भी अवलोकन करना चाहिये। अनेक लोग क्रोध करने पर स्वतः ही कांपने लगते हैं तो अनेक लोग निराशा होने पर मानसिक संताप का शिकार होते हैं। अतः इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि हमारे जिस मानसिक भाव का बोझ हमारी यह देह नहीं उठा पाती उसे अपने मन में ही न आने दें।
कहने का तात्पर्य यह है कि जब हम कोई काम या कामना करते हैं तो उस समय हमें अपनी आर्थिक, मानसिक और सामाजिक स्थिति का भी अवलोकन करना चाहिये। कभी कभी गुस्से या प्रसन्नता के कारण हमारा रक्त प्रवाह तीव्र हो जाता है और हम अपने मूल स्वभाव के विपरीत कोई कार्य करने के लिये तैयार हो जाते हैं और जिसका हमें बाद में दुःख भी होता है। अतः इसलिये विशेष अवसरों पर आत्ममुग्ध होने की बजाय आत्म चिंतन करते हुए कार्य करना चाहिए।
Fwd :- चाणक्य निति ||
धनविहीन पुरुष को वेश्या, शक्तिहीन राजा को प्रजा, जिसका फल झड गया है,
ऎसे वृक्ष को पक्षी त्याग देते हैं और भोजन कर लेने के बाद अतिथि उस घर
को छोड देता है ॥१७
जो माता अपने बेटे को पढाती नहीं, वह शत्रु है । उसी तरह पुत्र को न
पढानेवाला पिता पुत्र का बैरी है । क्योंकि (इस तरह माता-पिता की ना समझी
से वह पुत्र ) सभा में उसी तरह शोभित नहीं होता, जैसे हंसो के बीच में
बगुला ॥११॥
पहला कष्ट तो मूर्ख होना है, दूसरा कष्ट है जवानी और सब कष्टों से बढकर
कष्ट है, पराये घर में रहना ॥८
वे ही पुत्र, पुत्र हैं जो पिता के भक्त हैं । वही पिता, पिता है, हो
अपनी सन्तानका उचित रीति से पालन पोषण करता है । वही मित्र, मित्र है कि
जिसपर अपना विश्वास है और वही स्त्री स्त्री है कि जहाँ हृदय आनन्दित
होता है ॥४॥
समझदार मनुष्य का कर्तव्य है कि वह कुरूपा भी कुलवती कन्या के साथ विवाह
कर ले, पर नीच सुरूपवती के साथ न करे । क्योंकि विवाह अपने समान कुल में
ही अच्छा होता है ॥१४॥
जिस मनुष्य की स्त्री दुष्टा है, नौकर उत्तर देनेवाला (मुँह लगा) है और
जिस घर में साँप रहता है उस घरमें जो रह रहा है तो निश्चय है कि किसीन
किसी रोज उसकी मौत होगी ही ॥५॥
मनुष्य का कर्तव्य है कि अपनी कन्या किसी अच्छे खानदान वाले को दे ।
पुत्र को विद्याभ्यास में लगा दे । शत्रु को विपत्ति में फँसा दे और
मित्र को धर्मकार्य में लगा दे ॥३॥
मनुष्य का आचरण उसके कुल को बता देता है, उसका भाषण देश का पता दे देता
है, उसका आदर भाव प्रेम का परिचय दे देता है और शरीर भोजनका हाल कह
देताहै ॥२॥
कोयल का सौन्दर्य है उसकी बोली, स्त्री का सौन्दर्य है उसका पातिव्रत ।
कुरूप का सौन्दर्य है उसकी विद्या और तपस्वियों का सौन्दर्य है उनकी
क्षमाशक्ति ॥९॥
जहाँ एक के त्यागने से कोल की रक्षा हो सकती हो, वहाँ उस एक को त्याग दे
। यदि कुल के त्यागने से गाँव की रक्षा होती हो तो उस कुल को त्याग दे ।
यदि उस गाँव के त्यागने से जिले की रक्षा हो तो गाँव को त्याग दे और यदि
पृथ्वी के त्यागने से आत्मरक्षा सम्भव हो तो उस पृथ्वी को ही त्याग दे
॥१०
उद्योग करने पर दरिद्रता नहीं रह सकती । ईश्वर का बार बार स्मरण करते
रहने पर पाप नहीं हो सकता । चुप रहने पर लडाई झगडा नहीं हो सकता और जागते
हुए मनुष्य के पास भय नहीं टिक सकता ॥११॥
अतिशय रूपवती होने के कारण सीता हरी गई । अतिशय गर्व से रावण का नाश हुआ
। अतिशय दानी होने के कारण वलि को बँधना पडा । इसलिये लोगों को चाहिये कि
किसी बात में 'अति' न करें ॥१२॥
(वन) के एक ही फूले हुए और सुगन्धित वृक्ष ने सारे वन को उसी तरह
सुगन्धित कर दिया जैसे कोई सपूत अपने कुल की मर्यादा को उज्ज्वल कर देता
है ॥१४॥
उसी तरह वनके एक ही सूखे और अग्नि से जतते हुए वृक्ष के कारण सारा वन जल
कर खाक हो जाता है । जैसे किसी कुपूत के कारण खानदान का खानदान बदनाम हो
जाता है ॥१५।
शोक और सन्ताप देनेवाले बहुत से पुत्रों के होने से क्या लाभ ? अपने कुल
के अनुसार चलनेवाला एक ही पुत्र बहुत है कि जहाँ सारा कुल विश्राम कर सके
॥१७॥
पाँच वर्ष तक बच्चे का दुलार करे । फिर दस वर्ष तक उसे ताडना दे, किन्तु
सोलह वर्ष के हो जाने पर पुत्र को मित्र के समान समझे ॥१८॥
दंगा बगैरह खडा हो जाने पर, किसी दूसरे राजा के आक्रमण करने पर, भयानक
अकाल पडने पर और किसी दुष्ट का साथ हो जाने पर , जो मनुष्य भाग निकलता
है, वही जीवित रहता है ॥१९॥
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पदार्थों में से एक पदार्थ भी जिसको
सिध्द नहीं हो सका, ऎसे मनुष्य का मर्त्यलोक में बार-बार जन्म केवल मरने
के लिए होता है । और किसी काम के लिए नहीं ॥२०॥
जिस देश में मूर्खों की पूजा नहीं होती, जहाँ भरपूर अन्न का संचय रहता है
और जहाँ स्त्री पुरुष में कलह नहीं होता, वहाँ बस यही समझ लो कि लक्ष्मी
स्वयं आकर विराज रही हैं ॥२१॥
आयु, कर्म, धन, विद्या, और मृत्यु ये पाँच बातें तभी लिख दी जाती हैं, जब
कि मनुष्य गर्भ में ही रहता है ॥१॥
जब तक कि शरीर स्वस्थ है और जब तक मृत्यु दूर है । इसी बीच में आत्मा का
कल्याण कर लो । अन्त समय के उपस्थित हो जाने पर कोई क्या करेगा ? ॥४॥
मूर्ख पुत्र का चिरजीवी होकर जीना अच्छा नहीं है । बल्कि उससे वह पुत्र
अच्छा है, जो पैदा होते ही मर जाय । क्योंकि मरा पुत्र थोडे दुःख का कारण
होता है, पर जीवित मूर्ख पुत्र जन्मभर जलाता ही रहता है ॥७॥
खराब गाँव का निवास, नीच कुलवाले प्रभु की सेवा, खराब भोजन, कर्कशा
स्त्री, मूर्ख पुत्र और विधवा पुत्री ये छः बिना आग के ही प्राणी के शरीर
को भून डालते हैं ॥८॥
ऎसी गाय से क्या लाभ जो न दूध देती है और न गाभिन हो । उसी प्रकार उस
पुत्र से क्या लाभ, जो न विद्वान हो और न भक्तिमान् ही होवे ॥९॥
सांसारिक ताप से जलते हुए लोगों के तीन ही विश्राम स्थल हैं । पुत्र,
स्त्री और सज्जनों का संग ॥१०
जिस धर्म में दया का उपदेश न हो, वह धर्म त्याग दे । जिस गुरु में विद्या
न हो, उसे त्याग दे । हमेशा नाराज रहनेवाली स्त्री त्याग दे और
स्नेहविहीन भाईबन्धुओं को त्याग देना चाहिये ॥१६
           ११-----यह कैसा समय है, मेरे कौन २ मित्र हैं, यह कैसा देश
है, इस समय हमारी
क्या आमदनी और क्या खर्च है, मैं किसेके अधीन हूँ और मुझमें कितनी शक्ति
है इन बातों को बार-बार सोचते रहना चाहिये ॥१८
जैसे रगडने से, काटने से, तपाने से और पीटने से, इन चार उपायों से सुवर्ण
की परीक्षा की जाती है, उसी प्रकार त्याग, शील, गुण और कर्म, इन चार
बातों से मनुष्य की परीक्षा होती है ॥२॥
भय से तभी तक डरो, जब तक कि वह तुम्हारे पास तक न आ जाय । और जन आ ही जाय
तो डरो नहीं बल्कि उसे निर्भिक भाव से मार भगाने की कोशिश करो ॥३॥
            १२----निस्पृह मनुष्य कभी अधिकारी नहीं हो सकता । वासना से
शुन्य मनुष्य
श्रृंगार का प्रेमी नहीं हो सकता । जड मनुष्य कभी मीठी वाणी नहीं बोल
सकता और साफ-साफ बात करने वाला धोखेबाज नहीं होता ॥५॥
दरिद्र मनुष्य धन चाहते हैं । चौपाये वाणी चाहते हैं । मनुष्य स्वर्ग
चाहतें हैं और देवता लोग मोक्ष चाहते हैं ॥१८॥
               १३---मनुष्यों में नाऊ, पक्षियों में कौआ, चौपायों में
स्यार और स्त्रियों में
मालिन, ये सब धूर्त होते हैं ॥२१
संसार में पिता पाँच प्रकार के होते हैं । ऎसे कि जन्म देने वाला,
विद्यादाता, यज्ञोपवीत आदि संस्कार करनेवाला, अन्न देनेवाला और भय से
बचानेवाला ॥२२॥
उसी तरह माता भी पाँच ही तरह की होती हैं । जैसे राजा की पत्नी, गुरु की
पत्नी, मित्र की पत्नी, अपनी स्त्री की माता और अपनी खास माता ॥२३॥
           १४--पक्षियों में चाण्डाल है कौआ, पशुओं में चाण्डाल कुत्ता,
मुनियों में
चाण्डाल है पाप और सबसे बडा चाण्डाल है निन्दक ॥२
भ्रमण करनेवाला राजा पूजा जाता है, भ्रमण करता हुआ ब्राह्मण भी पूजा जाता
है और भ्रमण करता हुआ योगी पूजा जाता है, किन्तु स्त्री भ्रमण करने से
नष्ट हो जाती है ॥४॥
            १५---जैसा होनहार होता है, उसी तरह की बुध्दि हो जाती है,
वैसा ही कार्य होता
है और सहायक भी उसी तरह के मिल जाते हैं ॥६॥
ऋण करनेवाले पिता, व्याभिचारिणी माता, रूपवती स्त्री और मूर्ख पुत्र, ये
मानवजातिके शत्रु हैं ॥११॥
लालचीको धनसे, घमएडी को हाथ जोडकर, मूर्ख को उसके मनवाली करके और यथार्थ
बात से पण्डित को वश में करे ॥१२॥
राज्य ही न हो तो अच्छा, पर कुराज्य अच्छा नहीं । मित्र ही न हो तो
अच्छा, पर कुमित्र होना ठीक नहीं । शिष्य ही न हो तो अच्छा, पर कुशिष्य
का होना अच्छा नहीं । स्त्री ही न हो तो ठीक है, पर खराब स्त्री होना
अच्छा नहीं ॥१३॥
बदमाश राजा के राज में प्रजा को सुख क्योंकर मिल सकता है । दुष्ट मित्र
से भला हृदय्कब आनन्दित होगा । दुष्ट स्त्री के रहने पर घर कैसे अच्छा
लगेगा और दुष्ट शिष्य को पढा कर यश क्यों कर प्राप्त हो सकेगा ॥१४॥
सिंह से एक गुण, बगुले से एक गुण, मुर्गे से चार गुण, कौए से पाँच गुण,
कुत्ते से छ गुण और गधे से तीन गुण ग्रहण करना चाहिए ॥१५॥
मनुष्य कितना ही बडा काम क्यों न करना चाहता हो, उसे चाहिए कि सारी शक्ति
लगा कर वह काम करे । यह गुण सिंह से ले ॥१६॥
समझदार मनुष्य को चाहिए कि वह बगुले की तरह चारों ओर से इन्द्रियों को
समेटकर और देश काल के अनुसार अपना बल देख कर सब कार्य साधे ॥१७॥
ठीक समय से जागना, लडना, बन्धुओंके हिस्से का बटवारा और छीन झपट कर भोजन
कर लेना, ये चार बातें मुर्गे से सीखे ॥१८॥
एकान्त में स्त्री का संग करना , समय-समय पर कुछ संग्रह करते रहना, हमेशा
चौकस रहना और किसी पर विश्वास न करना, ढीठ रहना, ये पाँच गुण कौए से
सीखना चाहिए ॥१९॥
अधिक भूख रहते भी थोडे में सन्तुष्ट रहना, सोते समय होश ठीक रखना, हल्की
नींद सोना, स्वामिभक्ति और बहादुरी-- ये गुण कुत्ते से सीखना चाहिये ॥२०॥
भरपूर थकावट रहनेपर भी बोभ्का ढोना, सर्दी गर्मी की परवाह न करना, सदा
सन्तोष रखकर जीवनयापन करना, ये तीन गुण गधा से सीखना चाहिए ॥२१॥
जो मनुष्य ऊपर गिनाये बीसों गुणों को अपना लेगा और उसके अनुसार चलेगा, वह
सभी कार्य में अजेय रहेगा ॥२२॥

भूल बैठे , सब कुछ

हमें और भी पीछे जाना होगा , भूल चुके सब कुछ. अतीत को याद करके गौरवान्वित होते - होते वर्तमान की चेस्टाएं , सुकर्म , आचार - विचार , व्यवहार , खान - पान , वेश - भूषा , अनुशासन .....न जाने क्या -क्या खो चुके हैं हम ! जिस काल से हमने आलोचनाओं का स्वाद लेना शुरू किया , पतन की राहें नजदीक आती गयी.
        और आज ? आज हम अधोगति की पराकाष्ठा से भी आगे निकलने की हौड़ की दोड़ में शामिल होकर अपने को गौरवशाली मान रहे हैं ! क्या हो गया है हमें ? संस्कृति की अप कीर्ति में हमारे सहयोग को वर्तमान से इतिहास बना काल भूला नहीं पायेगा !
        पर थक - हार कर बैठने से कुछ नहीं होने वाला है. याद रखिये - एक नन्हे से बीज से पुनः वट वृक्ष खड़ा हो जाता है , खेत लहलहाने लग जाते हैं. हमारे पास बीजों की कमी नहीं है. आध्यात्मिक देश की असली संपत्ति तो उसकी आध्यात्मिक विभूतियाँ ही होती है. परन्तु जब दानव - राक्षस राज करें तो इन " बीजों " को भी दब कर रहना पड़ता ही है , लेकिन याद रखें - जब - जब इस धरा पर राम - परशुराम - कृष्ण - चाणक्य - चंद्रशेखर - भगत सिंह - गांधी - जय प्रकाश - अन्ना - रामदेव जैसे बीज जोर मारते हैं तो धरा को भी फाड़ कर अपने अस्तित्व का परिचय दे ही देते हैं. हर युग में हिरणाक्ष - हिरण कश्यपू - रावण - कंस पैदा हुए और " अति" करने के उपरांत  "इति" को प्राप्त हुए , इतिहास गवाह है !
       अब हमें क्या करना होगा ? हमारा क्या कृत्तव्य है ? क्या धर्म है हमारा ? यह सब जानने के लिए हमें ऋषि - मुनियों की शरण में जाना ही पड़ेगा . कोई चारा नहीं है - इसके अलावा.
       हमें सच्चे दिल से , सच्चे मन से , सच्चे हृदय से यानि " मनसा - वाचा - कर्मणा " के भाव से शुद्ध होकर पुनः " अ आ इ ई ---क ख ग घ ---१ २ ३ ४ " से जीवन शुरू करना होगा. इसमें कोई शक नहीं है कि हमारी नई पौध हमसे ज्यादा सक्षम होगी इस महान देश के सनातनी आध्यात्म को समझने में.लेकिन....लेकिन तैयारी तो हमें ही करनी होगी, वरना हो गयी नई पौध तैयार !!!
    राजस्थानी कहावत है :"जद बोइ जै : निना
णी जै : काटी जै : फटकी जै : पिसी जै ::: जै इत्ती होवे पोटी : जणा बनै रोटी "
    तो यह पोटी यानि क्षमता तो हमें ही उत्पन्न करनी होगी. क्यों आने वाली संतानों से गाली खाने की व्यवस्थाओं में ही मशगूल हो, अब तो जागो !! नहीं तो हो गए हमारे श्राद्ध - तर्पण, हमारे मरने के बाद  !!! सोच लो किसके लिए जी रहे हो , क्यों जी रहे हो ?? अरे मर - मर के भी जीना कोई जीना है !!!???!!!
जुगल किशोर सोमाणी , जयपुर

यात्रा बहुचर्चित मंदिर " पद्मनाभ स्वामी " की

अभी सनातन धर्म के गौरव " भगवान श्री पद्मनाभ स्वामी " की चर्चा जोरों पर है.पिछले दिनों माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश पर इस पुरातन मंदिर के तहखानों को खोला गया. सोने की चिड़िया कहलाने वाले इस देश का पुख्ता प्रमाण मिला, इस भव्य और विराट मंदिर में....खैर ! मेरा अभिप्राय आप सबको इस मंदिर की सैर कराने का है.
   वर्तमान में सनातन धर्म के प्रचार - प्रसार में जो सहयोग गोरखपुर , उत्तर प्रदेश स्थित " गीता प्रेस " का रहा है, ऐसा प्रयास बहुत कम संस्थाओं का रहा है. कम से कम कीमत में हजारों - लाखों पुस्तकों को घर-घर पहुंचाने का वास्तविक श्रेय इसी संस्था को जाता है. अस्तु !
      " तीर्थांक " नामक इकतीसवें वर्ष के विशेषांक के पन्नो से निकल कर भगवान श्री पद्मनाभ स्वामी की यह कथा आपके सम्मुख प्रस्तुत है :
     वर्तमान केरल राज्य की राजधानी तिरुअनन्तपुरम ,जिसका पौराणिक नाम " अनंतवनम " था,में स्थित इस विराट व भव्य मंदिर के वर्तमान स्वरुप  का निर्माण सन १०४९ ईशवीं में हुआ था.इसके पहले यह सम्पूर्ण मंदिर , दिवाकर नामक विष्णु भक्त के द्वारा, विशाल पेड़ की उस लकड़ी द्वारा निर्मित हुआ था, जिसमें भगवान ने दिवाकर को दर्शन दिए थे.वर्तमान मंदिर भी विलक्षणता का जीता जागता प्रमाण है.
     शास्त्रोक्त विधि से बारह हजार शालिग्राम खण्डों(काले कसौटी के प्रस्तर) को एकत्रित करके "कटुशर्करयोग" के मिश्रण से जोड़ कर भगवान  पद्मनाभ का वर्तमान श्री विग्रह का निर्माण किया गया. शेषशायी मूर्ति की विशालता का प्रमाण इस बात से सिद्ध होता है कि गर्भ गृह में विराजित श्री विग्रह के दर्शनों के लिए लगातार तीन अलग-अलग दरवाजों से दर्शन करने पर ही पूर्ण दर्शन हो पाते हैं. प्रथम दरवाजे से श्री मुख,द्वितीय दरवाजे से वक्षःस्थल एवं नाभि और तृतीय दरवाजे से श्री चरणों के दर्शन पूर्ण होते हैं. विश्व की सबसे बड़ी शेषशायी प्रतिमा में भगवान पद्मनाभ की नाभि से निकले कमल पर श्रृष्टि रचियता ब्रह्माजी विराजमान है. श्रृष्टि पालक श्री विष्णु हरि के दाहिने हस्त के नीचे साक्षात महादेव शिवलिंग के रूप में विराजमा
है. मंदिर के पूर्वी भाग में गरुड़ जी को स्वर्ण मंडित किया गया है. हाँ , पश्चिम भाग में श्री कृष्ण का भव्य मंदिर भी अति दर्शनीय है.दक्षिण क्षोर पर हरिहर - पुत्र के रूप में भगवान शास्ता (शिशु)  एक छोटे से मंदिर में शोभा बढ़ा रहे हैं.दक्षिण भारत में उत्सवों का बहुत महत्व है.उत्सव के समय भगवान की सवारी नगर दर्शन पर निकलती है. भगवान पद्मनाभ स्वामी की उत्सव मूर्ति के साथ श्रीदेवी,भूदेवी और नीलादेवी की भव्य प्रतिमाओं के साथ शोभा यात्रा की छटा देखते ही बनती है.
    इस क्षेत्र का विवरण ब्रह्माण्ड पुराण , महाभारत , व अन्य कई पुरानों में भी मिलता है.यह पौराणिकता का द्योतक है.एक विशेष  और महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मंदिर का मंडप एक ही पत्थर से निर्मित है.
    केरल देश का भव्य प्रदेश है. अबकी बार दक्षिण भारत की यात्रा में केरल जाना न भूलें. आपकी यात्रा अविश्मरणीय हो जायेगी. प्रदेश के "गुरुवायुर " जैसे मंदिरों के दर्शन करना न भूलें.
संकलक :
जुगल किशोर सोमाणी , जयपुर

रविवार, 3 जुलाई 2011

लोकपाल के ताबूत में एक और दरार |


परिस्थितियों के दबाव के बावजूद सरकार देश में स्वतंत्र भ्रष्टाचार विरोधी संस्था का गठन करने में भयभीत क्यों दिखाई पड़ रही है? वह क्यों सोचती है कि ऐसा कोई संगठन समानांतर सरकार का स्वरूप धारण कर लेगा?

ऐसा लगता है कि देश ऐसे लोगों से भर गया है जो न केवल दब्बू हैं और खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं, बल्कि उनमें दूसरों के प्रति विश्वास की भी भारी कमी है। प्रशासन अपने जन सेवा के कर्तव्यों को सुधारवादी रवैये के साथ पूरा करने के बजाय पूरी तरह कारोबारी हो गया है।

इसका प्रमुख कारण जीवन के हर क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार है। इसे सहन करके या इसे बढ़ावा देकर किसी न किसी रूप में हम सब इसके लिए जिम्मेदार हैं।

सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार को रोकने एवं उसे दंडित करने के लिए देश को इस समय एक व्यापक एवं कारगर सिस्टम की दरकार है। जनप्रतिनिधियों एवं मतदाता के बीच की बढ़ती खाई सोचनीय है। लेकिन जैसे ही चुनाव नजदीक आते हैं, वोट के भिखारी उसी सिविल सोसायटी के पास हाथ जोड़े दुबारा समर्थन मांगने पहुंच जाते हैं जिसे चुने जाने के बाद ये कहना शुरू कर देते हैं कि सिविल सोसायटी को उनसे कुछ पूछने का अधिकार ही क्या है? ये सिविल सोसायटी वाले होते कौन हैं?

मतदाता अब बदल रहे हैं। मीडिया और प्रौद्योगिकी के प्रति हमें शुक्रगुजार होना चाहिए कि वोटर अब अधिक जागरूक है। लोग अब उन तकलीफों का अंत चाहते हैं जो लंबे समय से उन्हें परेशान किए हुए हैं और उनके सपनों के पूरा होने में बाधक हैं।

अब वे अलग- थलग रहने के बजाय चाहते हैं कि उनकी बातें सुनी जाएं। समाज और शासन के मध्य विश्वास की भारी कमी है। लोग लाचार होकर अपने प्रतिनिधियों को भ्रष्टाचार में लिप्त देखते रहते हैं और उन्हीं की कीमत पर वे दुबारा चुन कर आ जाते हैं। किसी कैंडिडेट को रिजेक्ट करने का अधिकार न होने के कारण वोटर शैतान और समुद्र में से किसी एक को चुनने को मजबूर है।

लोगों ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में एक स्वतंत्र भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकरण के गठन के लिए इसलिए आंदोलन किया कि राष्ट्रीय संसाधनों के निर्लज्ज दोहन वाले एक के बाद एक घोटाले सामने आए और सरकार ने उनके खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की। चाहे इसे मानवीय इच्छा शक्ति की कमी मानें या ढांचागत अभाव, सरकारी मशीनरी हर मामले में विफल साबित हुई है।

बाहरी और भीतरी दबावों के बाद सरकार 42 साल पुराने 'लंबित' लोकपाल बिल की झाड़पोंछ करने को तैयार हुई। बड़ी मजबूरी में सरकार एक कमजोर लोकपाल विधेयक के मसौदे के साथ सामने आई। यह भी उसने तब किया जब सिविल सोसायटी हस्तक्षेप करते हुए भ्रष्टाचार की मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक और कारगर भ्रष्टाचार विरोधी ड्राफ्ट के साथ आगे आई। आगे की कहानी लोगों को मालूम है।

अन्ना हजारे की टीम के पांच सदस्यों और पांच सरकारी सदस्यों की बैठकों के बाद दो परस्पर विरोधी दृष्टिकोण सामने आए। सरकारी मसौदा इस देश के लोगों के साथ एक छलावा है। यह भ्रामक है और मुद्दों को उलझाने वाला है। जरा गौर फरमाएं तो इस तथ्य की पुष्टि इन प्रमुख मतभेदों से हो जाती है।

चयन समिति: सिविल सोसायटी द्वारा प्रस्तावित बिल में दो चुने हुए राजनीतिज्ञ, चार सेवारत न्यायाधीश एवं दो स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरणों को शामिल करने पर बल दिया गया है। दूसरी ओर मंत्रियों की ओर से पेश किए गए प्रस्ताव में छह चुने हुए राजनेता (जिनमें से पांच सत्तारूढ़ दल और एक विपक्ष से), दो सेवारत जज और दो सरकारी अधिकारी।

यह पहला बड़ा अंतर है। इस प्रकार एक ओर 'सत्ता में बैठी सरकार' के प्रभुत्व वाला पैनल है और दूसरी ओर जन लोकपाल बिल में प्रस्तावित संतुलित पैनल है।

दूसरा प्रमुख मतभेद पड़ताल समिति को लेकर है। इस समिति पर देश में उपलब्ध प्रतिभावान लोगों को शामिल करते हुए पारदर्शी तरीके से देशव्यापी पड़ताल एवं समन्वय की जिम्मेदारी होगी। सिविल सोसायटी ने दस सदस्यीय समिति का प्रस्ताव किया जिसमें पांच भूतपूर्व सदस्य उच्च न्यायपालिका से, अवकाश प्राप्त नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक एवं मुख्य चुनाव आयुक्त एवं पांच सदस्य सिविल सोसायटी से लिए जाएंगे।

इससे देश के गणमान्य लोगों भ्रष्टाचार से निपटने में अपनी भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा। सरकारी प्रस्ताव में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। वह कुल मिलाकर सरकारी संरक्षण का मोहताज है।

सरकारी बिल में तीसरा एवं गंभीर मतभेद पूछताछ एवं जांच के बाद सभी स्तरों पर अभियुक्त की 'इच्छा' एवं 'व्यक्तिगत सुनवाई' के प्रावधान को लेकर है। इससे मुकदमेबाजी और विलंब का रास्ता खुलेगा। उदाहरण के तौर पर: पूछताछ > लोकपाल से शिकायत > अभियुक्त की सुनवाई > जांच और अंतिम चार्जशीट से पूर्व एक और सुनवाई। यहां तक कि किसी व्यक्ति के अप्रत्यक्ष मामले में भी यदि उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचती हो तो उसे भी समान अवसर दिया जाना चाहिए।

सिविल सोसायटी के ड्राफ्ट बिल में प्रारंभिक जांच के बाद अभियुक्त को कानून के मुताबिक पूछताछ एवं जांच के लिए संबद्ध कर दिया जाएगा, उसके बचाव को साझा करने के लिए कोई पूर्व सुनवाई नहीं की जाएगी। उसे कानून के अनुसार अपना बचाव अदालत में करना होगा।

इसके अलावा दोनों मसौदों में इस बात को लेकर भी भारी अंतर है कि सरकारी मसौदे में नौकरशाही के संयुक्त सचिव स्तर से नीचे के तबकों को शामिल नहीं किया गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि आम आदमी अपने रोजमर्रा के कामों के निपटारे के लिए जिन अधिकारियों से रूबरू होता है, वह पूरी तरह उनके रहमोकरम पर निर्भर होगा।

सरकारी बिल में सिटीजन चार्टर के प्रावधान में समय पर काम न करने वाले अधिकारियों को दंडित करने का कोई उल्लेख नहीं है जबकि सिविल सोसायटी के मसौदे में इसकी व्यवस्था की गई है। इस खामी से यह संदेश जाता है कि भ्रष्टाचार केवल कॉर्पोरेट है और घूस बहुत 'मामूली' चीज है जिसके साथ आम आदमी को जीना ही है।

गंभीर चिंता का एक विषय यह भी है कि सरकारी मसौदे में लोकपाल एक अन्य एकाकी संस्था है। न तो उसे केंद्रीय सतर्कता आयोग दिया गया है और न ही सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा उसके सुपुर्द की गई है, जबकि लोकपाल का काम जांच करना ही है।

लोकपाल को किसी लंबित जांच के मामले से खास तौर से दूर रखा गया है। अत: भ्रष्टाचार के वे सभी पुराने मामले, यदि उनकी जांच हो रही हो तो वे लोकपाल के अधिकार क्षेत्र से दूर रहेंगे।

यदि इस किस्म का लोकपाल आता है तो वह कानून लागू करने वाली मशीनरी की एक बेकार तीली के अलावा कुछ नहीं होगा और वह मौजूदा खामियों को बढ़ाने वाला ही साबित होगा। वह भ्रष्टाचार निरोधक तंत्र को मजबूत करने के बजाय उसे और पंगु बनाएगा। इसके अलावा, इस बात का निर्णय कौन करेगा कि कौन सा मुद्दा किसे सौंपा जाए? प्रधानमंत्री जी, क्या समाधान के बजाय संघर्ष करना ही हमारी नियति है?

--

दर्द होता रहा छटपटाते रहे

“दर्द होता रहा छटपटाते रहे, आईने॒से सदा चोट खाते रहे, वो वतन बेचकर मुस्कुराते रहे
हम वतन के लिए॒सिर कटाते रहे
 Anna_Hazare-300x235.jpg

280
लाख करोड़ का सवाल है ...
भारतीय
गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा"* ये कहना है स्विस बैंक के
डाइरेक्टर
का. स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह
भी
कहा है कि भारत का लगभग 280
लाख
करोड़
रुपये
उनके स्विस
बैंक
में जमा है. ये रकम
इतनी
है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट
बिना
टैक्स के
बनाया
जा सकता
है
.
या
यूँ कहें कि 60 करोड़
रोजगार
के अवसर
दिए
जा सकते है. या यूँ भी कह सकते है
कि
भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4
लेन
रोड बनाया
जा
सकता है. ऐसा भी कह
सकते
है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है. ये
रकम
इतनी
ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60
साल
तक ख़त्म ना हो. यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत
नहीं
है. जरा सोचिये ... हमारे भ्रष्ट राजनेताओं
और
नोकरशाहों ने
कैसे
देश को

लूटा
है और ये लूट का सिलसिला अभी तक 2011 तक जारी है.
इस
सिलसिले को
अब
रोकना

बहुत
ज्यादा जरूरी हो गया है. अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सालो तक राज
करके
करीब 1 लाख
करोड़
रुपये लूटा. मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रस्टाचार ने 280
लाख
करोड़ लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64
सालों
में 280 लाख करोड़ है. यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर महीने
करीब
36 हजार करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट
लोगों
द्वारा जमा
करवाई
गई है. भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नहीं है. सोचो की
कितना
पैसा हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके
रखा
हुआ
है
. हमे भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ जाने का पूर्ण अधिकार
है
.हाल ही में हुवे घोटालों का
आप
सभी को पता ही है - CWG घोटाला, जी
स्पेक्ट्रुम
घोटाला , आदर्श होउसिंग घोटाला ... और ना जाने कौन कौन
से
घोटाले
अभी
उजागर होने वाले है ........आप लोग जोक्स फॉरवर्ड करते ही हो. इसे भी इतना
फॉरवर्ड
करो की पूरा भारत
इसे
पढ़े ... और एक आन्दोलन बन जाये

--
Rajeev Mohan Saxena



--
Biranchi N.P. Panda
Ph.no-  9953079450 (M)
           bnppanda@yahoo.com
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