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सोमवार, 19 नवंबर 2012

इंदिरा प्रियदर्शिनी :भारत का ध्रुवतारा

इंदिरा प्रियदर्शिनी :भारत का ध्रुवतारा 

जब ये शीर्षक मेरे मन में आया तो मन का एक कोना जो सम्पूर्ण विश्व में पुरुष सत्ता के अस्तित्व को महसूस करता है कह उठा कि यह उक्ति  तो किसी पुरुष विभूति को ही प्राप्त हो सकती है  किन्तु तभी आँखों के समक्ष प्रस्तुत हुआ वह व्यक्तित्व जिसने समस्त  विश्व में पुरुष वर्चस्व को अपनी दूरदर्शिता व् सूक्ष्म सूझ बूझ से चुनौती दे सिर झुकाने को विवश किया है .वंश बेल को बढ़ाने ,कुल का नाम रोशन करने आदि न जाने कितने ही अरमानों को पूरा करने के लिए पुत्र की ही कामना की जाती है किन्तु इंदिरा जी ऐसी पुत्री साबित हुई जिनसे न केवल एक परिवार बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र गौरवान्वित अनुभव करता है  और  इसी कारण मेरा मन उन्हें ध्रुवतारा की उपाधि से नवाज़ने का हो गया और मैंने इस पोस्ट का ये शीर्षक बना दिया क्योंकि जैसे संसार के आकाश पर ध्रुवतारा सदा चमकता रहेगा वैसे ही इंदिरा प्रियदर्शिनी  ऐसा  ध्रुवतारा थी जिनकी यशोगाथा से हमारा भारतीय आकाश सदैव दैदीप्यमान  रहेगा।
       १९ नवम्बर १९१७ को इलाहाबाद के आनंद भवन में जन्म लेने वाली इंदिरा जी के लिए श्रीमती सरोजनी नायडू जी ने एक तार भेजकर कहा था -''वह भारत की नई आत्मा है .''
       गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने उनकी शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् शांति निकेतन से विदाई के समय नेहरु जी को पत्र में लिखा था -''हमने भारी मन से इंदिरा को  विदा  किया है .वह इस स्थान की शोभा थी  .मैंने उसे निकट से देखा है  और आपने जिस प्रकार उसका लालन पालन किया है उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जा सकता .''   सन १९६२ में चीन ने विश्वासघात करके भारत  पर आक्रमण किया था तब देश  के कर्णधारों की स्वर्णदान की पुकार पर वह प्रथम भारतीय महिला थी जिन्होंने अपने समस्त पैतृक  आभूषणों को देश की बलिवेदी पर चढ़ा दिया था इन आभूषणों में न जाने कितनी ही जीवन की मधुरिम स्मृतियाँ  जुडी हुई थी और इन्हें संजोये इंदिरा जी कभी कभी प्रसन्न हो उठती थी .पाकिस्तान युद्ध के समय भी वे सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतु युद्ध के अंतिम मोर्चों तक निर्भीक होकर गयी .
आज देश अग्नि -५ के संरक्षण  में अपने को सुरक्षित महसूस कर रहा है इसकी नीव में भी इंदिरा जी की भूमिका को हम सच्चे भारतीय ही महसूस कर सकते हैं .भूतपूर्व राष्ट्रपति और भारत में मिसाइल कार्यक्रम  के जनक डॉ.ऐ.पी.जे अब्दुल कलाम बताते हैं -''१९८३ में केबिनेट ने ४०० करोड़ की लगत वाला एकीकृत मिसाइल कार्यक्रम स्वीकृत किया .इसके बाद १९८४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी डी.आर.डी एल .लैब  हैदराबाद में आई .हम उन्हें प्रैजन्टेशन दे रहे थे.सामने विश्व का मैप टंगा था .इंदिरा जी ने बीच में प्रेजेंटेशन रोक दिया और कहा -''कलाम !पूरब की तरफ का यह स्थान देखो .उन्होंने एक जगह पर हाथ रखा ,यहाँ तक पहुँचने वाली मिसाइल कब बना सकते हैं ?"जिस स्थान पर उन्होंने हाथ रखा था वह भारतीय सीमा से ५००० किलोमीटर दूर था .
    इस तरह की इंदिरा जी की देश प्रेम से ओत-प्रोत घटनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है और हम आज देश की सरजमीं पर उनके प्रयत्नों से किये गए सुधारों को स्वयं अनुभव करते है,उनके खून की एक एक बूँद हमारे देश को नित नई ऊँचाइयों पर पहुंचा रही है और आगे भी पहुंचती रहेगी.
                  आज का ये दिन हमारे देश के लिए पूजनीय दिवस है और इस दिन हम सभी  इंदिरा जी को श्रृद्धा  पूर्वक  नमन करते है .
              शालिनी कौशिक
           [कौशल ]

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

अफ़सोस ''शालिनी''को खत्म न ये हो पाते हैं .



अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं .
खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं ,
मिली देह इंसान की इनको भेड़िये नज़र आते हैं .

तबाह कर बेगुनाहों को करें आबाद ये खुद को ,
फितरतन इंसानियत के ये रक़ीब बनते जाते हैं .

फराखी इनको न भाए ताज़िर हैं ये दहशत के ,
मादूम ऐतबार को कर फ़ज़ीहत ये कर जाते हैं .

न मज़हब इनका है कोई ईमान दूर है इनसे ,
तबाही में मुरौवत की सुकून दिल में पाते हैं .

इरादे खौफनाक रखकर आमादा हैं ये शोरिश को ,
रन्जीदा कर जिंदगी को मसर्रत उसमे पाते हैं .

अज़ाब पैदा ये करते मचाते अफरातफरी ये ,
अफ़सोस ''शालिनी''को खत्म न ये हो पाते हैं .

शब्दार्थ :-फराखी -खुशहाली ,ताजिर-बिजनेसमैन ,
मादूम-ख़त्म ,फ़ज़ीहत -दुर्दशा ,मुरौवत -मानवता ,
शोरिश -खलबली ,रंजीदा -ग़मगीन ,मसर्रत-ख़ुशी ,
अज़ाब -पीड़ा-परेशानी .

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

रविवार, 18 मार्च 2012

क्या यही लोकतंत्र है?

   क्या यही लोकतंत्र है?
NULL Indians walk on a railway track in Mumbai, India, Thursday , March 15, 2012. Indian Railways Minister Dinesh Trivedi announced the first railway fare hike in eight years Wednesday, only to be shot down moments later by Congress party leader Mamata...

अमेरिका के  राष्ट्रपति अब्राहम  लिंकन की सर्वप्रसिद्ध परिभाषा  इस प्रकार है-
"प्रजातंत्र जनता का,जनता द्वारा तथा जनता के लिए शासन है."
                 
            और आज भारत में यही जनता शासन कर रही है .आज से नहीं बल्कि २६ जनवरी १९५० से जिस दिन हमारा गणतंत्र लागू हुआ था किन्तु क्या हम वास्तव  में इस शासन को अपने यहाँ महसूस  कर सकते हैं?शायद नहीं कारण साफ है जिन दलों के आधार पर हम अपने प्रतिनिधि  चुन  कर सरकार  बनाते  हैं जब उन दलों में ही लोकतंत्र नहीं है तो हम कैसे सच्चा लोकतंत्र अपने देश में कह सकते हैं?
              माननीय रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी जी ने इसबार  पूरे आत्मविश्वास से रेल बजट प्रस्तुत किया किन्तु उन्हें बदले में उन्ही के दल तृणमूल की प्रमुख ममता बैनर्जी  ने रेल किराया बढ़ाने को लेकर पद से इस्तीफा देने का फरमान जारी कर दिया .
           मैं पूछती  हूँ ममता जी से क्या उन्हें ऐसा करने का हक़ था ?जब दिनेश त्रिवेदी जी रेल मंत्री हैं और अपना बजट सदन में प्रस्तुत कर चुके हैं तो क्या सदन जिका कार्य उस पर विचार करना है क्या इस सम्बन्ध में निर्णय लेने  में अक्षम था?
       अब वे मुकुल राय जी का नाम इस पद हेतु प्रस्तावित कर रही हैं क्या उनके किसी कार्य को अपने सिद्धांतों के खिलाफ होने  पर क्या उनसे इस्तीफ़ा नहीं मांगेगी?क्या इस तरह वे स्वयं को भारतीय लोकतंत्र से ऊपर नहीं मानकर चल रही हैं?इस समय  दिनेश त्रिवेदी जी उनके अधीनस्थ पार्टी कार्यकर्ता नहीं हैं बल्कि भारतीय संविधान के महत्व पूर्ण केन्द्रीय मंत्री का पद भार संभाले हुए हैं और ऐसे में रेल बजट में क्या कमी है क्या जनता के साथ गलत हो रहा है ये देखना सदन की जिम्मेदारी है और ममता जी को ये कार्य उन्ही पर छोड़ देना चाहिए .अन्यथा हमें यही कहना होगा कि -
''लोकतंत्र मूर्खों का,मूर्खों  द्वारा और मूर्खों के लिए शासन है.''


शालिनी  कौशिक 
{कौशल}
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