वर्तमान समय भारतीय लोकतंत्र का संकर्मण काल कहा जा सकता है. लोकतंत्र की इस व्यवस्था ने देश को आकंठ भ्रष्टाचार , बेहद गरीबी , बेरोजगारी , मुक्त भोग विलासिता , भोंडे तरीकों से जीने की वासना में डुबो दिया है. कहीं अपनापन , राष्ट्रीयता , सद्भावना नज़र ही नहीं आ रही है. पूरा देश स्वार्थ , लालच , दोगलापन , वीभत्स मानसिकता के चंगुल में फंस गया है. चारों तरफ "अपनी" ही लगी हुई है. निकृष्ट आकांक्षाओं की भूख ने सबको मौकापरस्त , खुदगर्ज़ , शैतानी दिमाग से कमाए धन का लोलुप बना दिया.
अब सोचने की बात यह है कि हम ऐसा क्योंकर सोचने लग गए कि इन दुश्भावनाओं के पीछे हमारा लोकतंत्र जिम्मेदार है ? नहीं , लोकतंत्र जिम्मेदार नहीं बल्कि आज इस तंत्र के जो पहरुए हैं , जो अपने आप को इस देश के भाग्य विधाता समझ बैठें हैं , इन लोगों ने एक ऐसे जाल का निर्माण कर डाला जिसमें हमारा यह पवित्र लोकतंत्र , इसके जनक (हमारी यह भारतीय जनता) फांस दिए गए. आज देश की एक भी ऐसी राजनैतिक पार्टी नहीं है जो अपने व अपने कार्यकर्ताओं को पाक - साफ़ बता सके. सब के सब गन्दे कीचड़ से सने पड़े हैं ,कालिख ही कालिख पोत रखी है , असली चेहरा तो नज़र ही नहीं आ रहा है , सब मुखोटों की ओट में छिपे देश की निरीह जनता को लोकतंत्र के नाम से ठगने का व्यापार कर रहे हैं.
आज जन जागरण की आवश्यकता है . महान भारत का इतिहास गवाह है कि इस देश में धर्म - आध्यात्म का ही एक ऐसा बल था जो सम्पूर्ण धरा पर देशप्रेम , ईमानदारी , सुहृदयता, अपनापन , भाई चारा , माता - पिता - गुरु का सम्मान , परिवार - पालन की सात्विकता ,"तंत्र" के प्रति जवाबदेह होने की प्रेरणा प्रदान करता आया है. पहले राज तंत्र था - उसकी अच्छाइयों को भी मान मिलता था तो बुराइयों का विरोध भी होता था . मगर यह विरोध कुल गुरु , धर्म गुरु या ऋषि - मुनियों के सानिध्य में मुखर होता था. भगवान परशुराम , आचार्य चाणक्य इस के सशक्त उदाहरण है.
परन्तु न जाने क्या समझ कर इस देश को "धर्म निरपेक्ष" शब्द दे दिया गया , मैं समझता हूँ वह समय लोकतंत्र के ऊपर पहला घातक वार था, जिस वक्त यह दूषित निर्णय लिया गया था. फिर तो एक दौर चल पड़ा - आरोपों / आक्षेपों का. जो भी नीति नियामक बात कहे या व्यवहार करें वही "साम्प्रदायिक" . इस साम्प्रदायिक शब्द ने लोकतंत्र की काया पर वार पर वार किये. साधू भगवा पहनता है तो साम्प्रदायिक , मुसलमान सड़क पर नमाज़ पढ़ता है तो साम्प्रदायिक , पाठ्य पुस्तकों में पौराणिक नीति संबंधी विषय जोड़ दे तो साम्प्रदायिक , वन्दे मातरम या भारत माता के जय बोल दे तो साम्प्रदायिक , धार्मिक - आध्यात्मिक वार्ता करें तो.........ऐसा दौर चला कि यह हमारा लोकतंत्र घायल होता ही गया........परन्तु अब इसे दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य यह लोकतंत्र महादेव शिव शम्भू से "अमर कथा" सुन बैठा....अब अमर हो जाने के कारण मर तो सकता नहीं सो बेचारा घायल होता गया , कराहता गया ,रोता गया........आज भी यह क्रम जारी है. सनद रहे - भगवान महेश्वर "लोकतंत्र" के सबसे सटीक व सशक्त उदाहरण है. यही एक ऐसा परिवार है जिसमें शेर , बैल , सांप -बिच्छु , चूहा , मौर सबका समावेश है.सब जानते हैं कि इन सभी प्राणियों में जातीय दुश्मनी है पर फिर भी एक ही परिवार में प्रेम से रह लेते हैं ( अब मेरी इस बात को भी साम्प्रदायिक न कह दें)
लोक यानि जनता का यह तंत्र मरा नहीं है , मर सकता भी नहीं , अमरता का वरदान जो मिला हुआ है , इस महान तंत्र को स्वस्थ , बलशाली , पोषक , सिरमौर बनाना है तो इस सनातन देश के आध्यात्म को सर्वोच्च शिखर पर स्थापित करना होगा . समस्त धर्म गुरुओं को अपने अपने धर्म की "वास्तविकताओं" को अपने अनुयाइयों के मध्य प्रचारित - प्रसारित (सही -सही - ईमानदारी पूर्वक) करना होगा. ध्यान रहे यह "आध्यात्म" शब्द प्रत्येक धर्म में विद्यमान है , हाँ , हो सकता है कि नाम अलग अलग हो .
एक बात चेतावनी पूर्वक कहना चाहूँगा - अगर अब भी यह "साम्प्रदायिक" शब्द जीवित रहा तो वह दिन दूर नहीं जब यह कहा जाएगा कि सूरज गर्म धूप और चन्द्रमा शीतलता की रोशनी क्यों दे रहे है , अग्नि जला क्यों रही है , जल प्यास क्यों बुझा रहा है , वायू प्राणों का संचार क्यों कर रहे है.......... ये सब साम्प्रदायिक हैं , हटाओ इनको......ब्रह्माण्ड में कोई अणु भी धर्म निरपेक्ष तो हो ही नहीं सकता , सबके अपने अपने कर्त्तव्य है , जिम्मेदारी है . फिर भला हमारा प्यारा भारत कैसे धर्म निरपेक्ष हो गया !!!! हमें अपनी इस भयंकर भूल को सुधारना ही होगा , फिर देखिये हमारे इस अमर लोकतंत्र के जलवे...............
जुगल किशोर सोमाणी , जयपुर
अब सोचने की बात यह है कि हम ऐसा क्योंकर सोचने लग गए कि इन दुश्भावनाओं के पीछे हमारा लोकतंत्र जिम्मेदार है ? नहीं , लोकतंत्र जिम्मेदार नहीं बल्कि आज इस तंत्र के जो पहरुए हैं , जो अपने आप को इस देश के भाग्य विधाता समझ बैठें हैं , इन लोगों ने एक ऐसे जाल का निर्माण कर डाला जिसमें हमारा यह पवित्र लोकतंत्र , इसके जनक (हमारी यह भारतीय जनता) फांस दिए गए. आज देश की एक भी ऐसी राजनैतिक पार्टी नहीं है जो अपने व अपने कार्यकर्ताओं को पाक - साफ़ बता सके. सब के सब गन्दे कीचड़ से सने पड़े हैं ,कालिख ही कालिख पोत रखी है , असली चेहरा तो नज़र ही नहीं आ रहा है , सब मुखोटों की ओट में छिपे देश की निरीह जनता को लोकतंत्र के नाम से ठगने का व्यापार कर रहे हैं.
आज जन जागरण की आवश्यकता है . महान भारत का इतिहास गवाह है कि इस देश में धर्म - आध्यात्म का ही एक ऐसा बल था जो सम्पूर्ण धरा पर देशप्रेम , ईमानदारी , सुहृदयता, अपनापन , भाई चारा , माता - पिता - गुरु का सम्मान , परिवार - पालन की सात्विकता ,"तंत्र" के प्रति जवाबदेह होने की प्रेरणा प्रदान करता आया है. पहले राज तंत्र था - उसकी अच्छाइयों को भी मान मिलता था तो बुराइयों का विरोध भी होता था . मगर यह विरोध कुल गुरु , धर्म गुरु या ऋषि - मुनियों के सानिध्य में मुखर होता था. भगवान परशुराम , आचार्य चाणक्य इस के सशक्त उदाहरण है.
परन्तु न जाने क्या समझ कर इस देश को "धर्म निरपेक्ष" शब्द दे दिया गया , मैं समझता हूँ वह समय लोकतंत्र के ऊपर पहला घातक वार था, जिस वक्त यह दूषित निर्णय लिया गया था. फिर तो एक दौर चल पड़ा - आरोपों / आक्षेपों का. जो भी नीति नियामक बात कहे या व्यवहार करें वही "साम्प्रदायिक" . इस साम्प्रदायिक शब्द ने लोकतंत्र की काया पर वार पर वार किये. साधू भगवा पहनता है तो साम्प्रदायिक , मुसलमान सड़क पर नमाज़ पढ़ता है तो साम्प्रदायिक , पाठ्य पुस्तकों में पौराणिक नीति संबंधी विषय जोड़ दे तो साम्प्रदायिक , वन्दे मातरम या भारत माता के जय बोल दे तो साम्प्रदायिक , धार्मिक - आध्यात्मिक वार्ता करें तो.........ऐसा दौर चला कि यह हमारा लोकतंत्र घायल होता ही गया........परन्तु अब इसे दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य यह लोकतंत्र महादेव शिव शम्भू से "अमर कथा" सुन बैठा....अब अमर हो जाने के कारण मर तो सकता नहीं सो बेचारा घायल होता गया , कराहता गया ,रोता गया........आज भी यह क्रम जारी है. सनद रहे - भगवान महेश्वर "लोकतंत्र" के सबसे सटीक व सशक्त उदाहरण है. यही एक ऐसा परिवार है जिसमें शेर , बैल , सांप -बिच्छु , चूहा , मौर सबका समावेश है.सब जानते हैं कि इन सभी प्राणियों में जातीय दुश्मनी है पर फिर भी एक ही परिवार में प्रेम से रह लेते हैं ( अब मेरी इस बात को भी साम्प्रदायिक न कह दें)
लोक यानि जनता का यह तंत्र मरा नहीं है , मर सकता भी नहीं , अमरता का वरदान जो मिला हुआ है , इस महान तंत्र को स्वस्थ , बलशाली , पोषक , सिरमौर बनाना है तो इस सनातन देश के आध्यात्म को सर्वोच्च शिखर पर स्थापित करना होगा . समस्त धर्म गुरुओं को अपने अपने धर्म की "वास्तविकताओं" को अपने अनुयाइयों के मध्य प्रचारित - प्रसारित (सही -सही - ईमानदारी पूर्वक) करना होगा. ध्यान रहे यह "आध्यात्म" शब्द प्रत्येक धर्म में विद्यमान है , हाँ , हो सकता है कि नाम अलग अलग हो .
एक बात चेतावनी पूर्वक कहना चाहूँगा - अगर अब भी यह "साम्प्रदायिक" शब्द जीवित रहा तो वह दिन दूर नहीं जब यह कहा जाएगा कि सूरज गर्म धूप और चन्द्रमा शीतलता की रोशनी क्यों दे रहे है , अग्नि जला क्यों रही है , जल प्यास क्यों बुझा रहा है , वायू प्राणों का संचार क्यों कर रहे है.......... ये सब साम्प्रदायिक हैं , हटाओ इनको......ब्रह्माण्ड में कोई अणु भी धर्म निरपेक्ष तो हो ही नहीं सकता , सबके अपने अपने कर्त्तव्य है , जिम्मेदारी है . फिर भला हमारा प्यारा भारत कैसे धर्म निरपेक्ष हो गया !!!! हमें अपनी इस भयंकर भूल को सुधारना ही होगा , फिर देखिये हमारे इस अमर लोकतंत्र के जलवे...............
जुगल किशोर सोमाणी , जयपुर
1 टिप्पणी:
दुर्भाग्य देश का |
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