अभी सनातन धर्म के गौरव " भगवान श्री पद्मनाभ स्वामी " की चर्चा जोरों पर है.पिछले दिनों माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश पर इस पुरातन मंदिर के तहखानों को खोला गया. सोने की चिड़िया कहलाने वाले इस देश का पुख्ता प्रमाण मिला, इस भव्य और विराट मंदिर में....खैर ! मेरा अभिप्राय आप सबको इस मंदिर की सैर कराने का है.
वर्तमान में सनातन धर्म के प्रचार - प्रसार में जो सहयोग गोरखपुर , उत्तर प्रदेश स्थित " गीता प्रेस " का रहा है, ऐसा प्रयास बहुत कम संस्थाओं का रहा है. कम से कम कीमत में हजारों - लाखों पुस्तकों को घर-घर पहुंचाने का वास्तविक श्रेय इसी संस्था को जाता है. अस्तु !
" तीर्थांक " नामक इकतीसवें वर्ष के विशेषांक के पन्नो से निकल कर भगवान श्री पद्मनाभ स्वामी की यह कथा आपके सम्मुख प्रस्तुत है :
वर्तमान केरल राज्य की राजधानी तिरुअनन्तपुरम ,जिसका पौराणिक नाम " अनंतवनम " था,में स्थित इस विराट व भव्य मंदिर के वर्तमान स्वरुप का निर्माण सन १०४९ ईशवीं में हुआ था.इसके पहले यह सम्पूर्ण मंदिर , दिवाकर नामक विष्णु भक्त के द्वारा, विशाल पेड़ की उस लकड़ी द्वारा निर्मित हुआ था, जिसमें भगवान ने दिवाकर को दर्शन दिए थे.वर्तमान मंदिर भी विलक्षणता का जीता जागता प्रमाण है.
शास्त्रोक्त विधि से बारह हजार शालिग्राम खण्डों(काले कसौटी के प्रस्तर) को एकत्रित करके "कटुशर्करयोग" के मिश्रण से जोड़ कर भगवान पद्मनाभ का वर्तमान श्री विग्रह का निर्माण किया गया. शेषशायी मूर्ति की विशालता का प्रमाण इस बात से सिद्ध होता है कि गर्भ गृह में विराजित श्री विग्रह के दर्शनों के लिए लगातार तीन अलग-अलग दरवाजों से दर्शन करने पर ही पूर्ण दर्शन हो पाते हैं. प्रथम दरवाजे से श्री मुख,द्वितीय दरवाजे से वक्षःस्थल एवं नाभि और तृतीय दरवाजे से श्री चरणों के दर्शन पूर्ण होते हैं. विश्व की सबसे बड़ी शेषशायी प्रतिमा में भगवान पद्मनाभ की नाभि से निकले कमल पर श्रृष्टि रचियता ब्रह्माजी विराजमान है. श्रृष्टि पालक श्री विष्णु हरि के दाहिने हस्त के नीचे साक्षात महादेव शिवलिंग के रूप में विराजमान है. मंदिर के पूर्वी भाग में गरुड़ जी को स्वर्ण मंडित किया गया है. हाँ , पश्चिम भाग में श्री कृष्ण का भव्य मंदिर भी अति दर्शनीय है.दक्षिण क्षोर पर हरिहर - पुत्र के रूप में भगवान शास्ता (शिशु) एक छोटे से मंदिर में शोभा बढ़ा रहे हैं.दक्षिण भारत में उत्सवों का बहुत महत्व है.उत्सव के समय भगवान की सवारी नगर दर्शन पर निकलती है. भगवान पद्मनाभ स्वामी की उत्सव मूर्ति के साथ श्रीदेवी,भूदेवी और नीलादेवी की भव्य प्रतिमाओं के साथ शोभा यात्रा की छटा देखते ही बनती है.
इस क्षेत्र का विवरण ब्रह्माण्ड पुराण , महाभारत , व अन्य कई पुरानों में भी मिलता है.यह पौराणिकता का द्योतक है.एक विशेष और महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मंदिर का मंडप एक ही पत्थर से निर्मित है.
केरल देश का भव्य प्रदेश है. अबकी बार दक्षिण भारत की यात्रा में केरल जाना न भूलें. आपकी यात्रा अविश्मरणीय हो जायेगी. प्रदेश के "गुरुवायुर " जैसे मंदिरों के दर्शन करना न भूलें.
संकलक :
जुगल किशोर सोमाणी , जयपुर
वर्तमान में सनातन धर्म के प्रचार - प्रसार में जो सहयोग गोरखपुर , उत्तर प्रदेश स्थित " गीता प्रेस " का रहा है, ऐसा प्रयास बहुत कम संस्थाओं का रहा है. कम से कम कीमत में हजारों - लाखों पुस्तकों को घर-घर पहुंचाने का वास्तविक श्रेय इसी संस्था को जाता है. अस्तु !
" तीर्थांक " नामक इकतीसवें वर्ष के विशेषांक के पन्नो से निकल कर भगवान श्री पद्मनाभ स्वामी की यह कथा आपके सम्मुख प्रस्तुत है :
वर्तमान केरल राज्य की राजधानी तिरुअनन्तपुरम ,जिसका पौराणिक नाम " अनंतवनम " था,में स्थित इस विराट व भव्य मंदिर के वर्तमान स्वरुप का निर्माण सन १०४९ ईशवीं में हुआ था.इसके पहले यह सम्पूर्ण मंदिर , दिवाकर नामक विष्णु भक्त के द्वारा, विशाल पेड़ की उस लकड़ी द्वारा निर्मित हुआ था, जिसमें भगवान ने दिवाकर को दर्शन दिए थे.वर्तमान मंदिर भी विलक्षणता का जीता जागता प्रमाण है.
शास्त्रोक्त विधि से बारह हजार शालिग्राम खण्डों(काले कसौटी के प्रस्तर) को एकत्रित करके "कटुशर्करयोग" के मिश्रण से जोड़ कर भगवान पद्मनाभ का वर्तमान श्री विग्रह का निर्माण किया गया. शेषशायी मूर्ति की विशालता का प्रमाण इस बात से सिद्ध होता है कि गर्भ गृह में विराजित श्री विग्रह के दर्शनों के लिए लगातार तीन अलग-अलग दरवाजों से दर्शन करने पर ही पूर्ण दर्शन हो पाते हैं. प्रथम दरवाजे से श्री मुख,द्वितीय दरवाजे से वक्षःस्थल एवं नाभि और तृतीय दरवाजे से श्री चरणों के दर्शन पूर्ण होते हैं. विश्व की सबसे बड़ी शेषशायी प्रतिमा में भगवान पद्मनाभ की नाभि से निकले कमल पर श्रृष्टि रचियता ब्रह्माजी विराजमान है. श्रृष्टि पालक श्री विष्णु हरि के दाहिने हस्त के नीचे साक्षात महादेव शिवलिंग के रूप में विराजमान है. मंदिर के पूर्वी भाग में गरुड़ जी को स्वर्ण मंडित किया गया है. हाँ , पश्चिम भाग में श्री कृष्ण का भव्य मंदिर भी अति दर्शनीय है.दक्षिण क्षोर पर हरिहर - पुत्र के रूप में भगवान शास्ता (शिशु) एक छोटे से मंदिर में शोभा बढ़ा रहे हैं.दक्षिण भारत में उत्सवों का बहुत महत्व है.उत्सव के समय भगवान की सवारी नगर दर्शन पर निकलती है. भगवान पद्मनाभ स्वामी की उत्सव मूर्ति के साथ श्रीदेवी,भूदेवी और नीलादेवी की भव्य प्रतिमाओं के साथ शोभा यात्रा की छटा देखते ही बनती है.
इस क्षेत्र का विवरण ब्रह्माण्ड पुराण , महाभारत , व अन्य कई पुरानों में भी मिलता है.यह पौराणिकता का द्योतक है.एक विशेष और महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मंदिर का मंडप एक ही पत्थर से निर्मित है.
केरल देश का भव्य प्रदेश है. अबकी बार दक्षिण भारत की यात्रा में केरल जाना न भूलें. आपकी यात्रा अविश्मरणीय हो जायेगी. प्रदेश के "गुरुवायुर " जैसे मंदिरों के दर्शन करना न भूलें.
संकलक :
जुगल किशोर सोमाणी , जयपुर
4 टिप्पणियां:
प्रिय मित्र जानकारी भी अच्छी है और बिचार भी आपका प्रयास बहुत सराहनीय है.
बहुत ही प्रभावशाली प्रस्तुति ||
bahut acha likha h dost.darr to iss baat ka h hamme ki kahi govt iss mandir ke khajane ko kisi or dhramo pr kharach na kare
बहुत सुन्दर जानकारी दी है आपने.
आभार.
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