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शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

रक्षाबंधन का महत्व

रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधनका शास्त्रीय महत्व !

अर्थ एवं कारण

१. ‘बहनकी जीवनभर रक्षा करूंगा’, यह वचन देकर भाई-बहनसे धागा बंधवाता है एवं उसे वचनबद्ध करनेके लिए बहन धागा बांधती है । ‘बहन एवं भाई इस संबंधमें बंधे रहें’, इसलिए यह दिन इतिहासकालसे प्रचलित है ।
२. राखी बहन एवं भाईके पवित्र बंधनका प्रतीक है ।
३. जैसे बहनकी रक्षाके लिए भाई धागा बंधवाकर वचनबद्ध होता है, उसी प्रकार बहन भी भाईकी रक्षाके लिए, ईश्वरके चरणोंमें विनती करती है ।
४. इस दिन श्री गणेश एवं श्री सरस्वतीदेवीका तत्त्व पृथ्वीतलपर अधिक मात्रामें आता है, जिसका लाभ दोनोंको ही होता है ।
५. बहनका भक्तिभाव, उसकी ईश्वरके प्रति तीव्र उत्कंठा एवं उसपर जितनी गुरुकृपा अधिक, उतना उसके भाईके लिए अर्ततासे की गई पुकारका परिणाम होता है और भाईकी आध्यात्मिक प्रगति होती है ।

बहन एवं भाईके बीच लेन-देन

बहन एवं भाई दोनोंमें साधारणत: ३० प्रतिशत लेन-देन रहता है । राखी पूर्णिमा जैसे त्यौहारोंके माध्यमसे उनमें लेन-देन घटता है, अर्थात् वे स्थूल स्तरपर एक-दूसरेसे बंधते हैं; परंतु सूक्ष्म-स्तरपर एकदूसरेका लेन-देनका चुकाते हैं । अत: दोनोंको ही इस अवसरका लाभ उठाना चाहिए ।

राखी कैसी होनी चाहिए  ?


     समाचार पत्रों में छपी खबरों के अनुसार सोनिया गाँधी को वाईरल फिभर हुआ था ! फिर बाद में खबर आयी कि सोनिया जी अपनी शल्य-क्रिया करवाने विदेश गयी हैं ! कहाँ गयी पता नहीं ? परन्तु फिर खबर आयी कि अमेरिका में उस्तरा चलवा रही हैं ! अब सहज प्रश्न उठता है कि वाईरल फिभर के लिए शल्य-क्रिया (ओपरेशन) की क्या आवश्यकता है ? फिर किसी ने बताया कि कैंसर हो गया है !

अब इस बीमारी कि खबर के बाद कहा गया कि देश सम्हालने का जिम्मा वो राहुल को सौंप गयी हैं ! परन्तु बाद में खबर आयी कि राहुल और प्रियंका भी साथ गए हैं ! और बढेरा भी ! फिर यह देश तो अब कागजों पर चल रहा है ! पता नहीं बेचारे मनमोहन अब क्या करेंगे ?

भाई आप लोग तो कुछ भी कयास लगाओ मुझे उससे कोई मतलब नहीं है ! लेकिन मेरी अंतर्दृष्टि कहती है कि यह देश में आसन्न संकटों के कारण उपस्थित प्राण-भय के कारण यह होसियारी से किया गया पलायन है ! यह देश से भागने की दूसरी कोशिश है सोनिया (एड्विग एन्टोनिया एल्बिना मायिनो) गाँधी का ! पहली कोशिश तब की गयी जब स्विस बैंकों में जमा धन को ठिकाने लगाने ८ जून को निजी विमान से स्विट्ज़रलैंड गयी थी अपने सभी खाताधारी सम्बन्धियों के साथ !

आज कौन क्या गा रहा है !

1. मनमोहन सिंह..."मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं, बड़ी मुश्किल में हूँ मैं किधर
जाऊं"
2-सोनिया गाँधी ... "मैं चाहे ये करूं मैं चाहे वो करूं मेरी मर्जी"
3-राहुल गाँधी ..."मैं राही अनजान राहों का, ओ यारो मेरा नाम अनजाना"
4-दिग्विजय सिंह..."मुझको यारो ...माफ़ करना मैं नशे में हूँ"
5-राहुल-दिग्विजय ..."ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे"
6-कनिमोझी ..."मैं तो भूल चली बाबुल का देश, तिहाड़ जेल प्यारा लगे"
7-करुणानिधि ..."बाबुल की दुआएं लेती जा,जा तुझको घोटालों का ताज मिले"
8-बाबा रामदेव ..."सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा"
9-अन्ना हजारे ..."जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं"
10-सभी देशभक्त भारतीय ..."इतनी शक्ति हमें देना दाता,मन का विश्वास कमजोर हो
ना"
11 कम्युनिस्ट .... यह लाल रंग कब हमे छोडेगा.

email from 
NILKANTH KORANNE

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

सही निर्वाचन


सनातन संस्कृति की मूर्धन्य पत्रिका "कल्याण" के अंक ८ (अगस्त २०११) में वर्तमान राजनीति को झकझोर देने वाली , श्री मान सुरेन्द्र कुमार जी द्वारा प्रेषित ,  एक अत्यंत ही शिक्षाप्रद घटना का वर्णन प्रकाशित हुआ है .....
स्वनामधन्य अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने एक ऐसे व्यक्ति को अपने देश का रक्षामंत्री नियुक्त किया , जिसने हर मौके - बेमौके पर लिंकन साहब की कटु आलोचना की . राष्ट्रपति के निकटस्थ प्रायः सभी शुभ चिंतकों ने उन्हें ऐसी नियुक्ति न करने की सलाह दी , हर तरह से उन्हें समझाया कि जो व्यक्ति हमेशा आपकी कटु आलोचना , और वह भी हर स्तर पर , करते आया है उस व्यक्ति को आपने इतने महत्वपूर्ण पद पर क्यों आसीन किया   है ?
अब ज़रा ध्यान से पढ़ें :
लिंकन साहब ने कहा कि मुझे "लिंकन भक्त" नहीं बल्कि "राष्ट्र भक्त" और योग्य व्यक्ति इस पद के लिए चाहिए , और इनसे योग्य व्यक्ति इस  दायित्व के लिए कोई हो ही नहीं सकता 
अब मेरी बात :

सोमवार, 1 अगस्त 2011

लाखों महिलाओं के कंधे पर टिका करोड़ों का व्यापार है पर फिर भी महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में कोई सुधार नहीं,




छो…छोको भूंजी लोक पतर तुड़ले लागसी भोक….” ( हम लोग गरीब भुंजिया आदिवासी, पत्ता तोड़ते हुए भूख लगती है ) नुआपाडा जिले के सीनापाली गांव में रहने वाली 55 वर्षीय पहनी मांझी को जंगल में तेदूपत्ता तोड़ते हुए जब भूख लगती है तो वो अपना ध्यान बंटाने के लिए यहीं उड़ीया लोकगीत गुनगुनाती हैं.


अप्रैल और मई महीने की चिलचिलाती धूप में जब हम अपने वातानुकुलित कमरे में बैठे आराम फरमा रहे होते हैं, उस समय इस इलाके की महिलाएं और बच्चे जंगल-जंगल भटक कर तेंदूपत्ता तोड़ रहे होते हैं. यह पत्ता ही है, जिसे बेचने के बाद उनके घरों में चुल्हा जल पाता है.


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