यहाँ कोई नियम नहीं, कोई बंदिश नहीं, बस वही बोलिए जो आपके अन्दर है, क्योंकि आपके अन्दर है भारत कि असली तस्वीर, तो छोडिये बनावटीपन, और आज निकाल डालिए मन कि भड़ास, अपनी रचना भेजने, अपनी बात कहने के लिए हमें मेल करें. editor.bhadohinews@gmail.com

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

सरकार ने कश्मीर के गद्दारों के कहने पर वहाँ पर से सैनिको से बंदूकें छीन ली हैं -BharatYogi.net * भारत योगी* se sabhar


शुक्रवार, मार्च 15, 2013

सरकार ने कश्मीर के गद्दारों के कहने पर वहाँ पर से सैनिको से बंदूकें छीन ली हैं

आप सोचते होंगे कि कैसे 2 आतंकवादी हमारे 5-5 वीर सैनिकों को मार देते हैं...

सच तो यह है के हमारे भारतीय सैनिकों के जैसे वीर इस पूरे संसार में नहीं हैं, लेकिन हमारी हिन्दू और भारत की दुश्मन कांग्रेस सरकार ने कश्मीर के गद्दारों के कहने पर वहाँ पर से सैनिको से बंदूकें छीन ली हैं और उन्हें हाथ मैं डंडे दे दिए हैं, अब आप ही सोचें के जो जवान हमारी रक्षा के लिए अपनी नींद, भूख और प्राणों तक की चिंता नहीं करते, उन जवानों के पास आज खुद कि रक्षा के लिए हाथ में बंदूकें नहीं हैं, और वो डंडों और गुलेलों से लड़ने के लिए मजबूर हैं, जिस के कारण हर दुसरे दिन कभी 5 तोह कभी 10 जवान शहीद हो रहे हैं...

दोस्तों, हमारी भारतीय सेना के सैनिकों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है, अब हमारी बारी है, अगर आप सच्चे देशभक्त हैं और सच में हमारे भारतीय सैनिकों का दिल से सम्मान करते हैं तो कृपया कर के 1 मिनट का समय दें और जितना हो सके, अपनी वाल पे, अपने पेज की वाल पे, अपने मित्र की वाल पे, ज़्यादा से ज़्यादा इस फोटो को शेयर करें, और हमारे भारतीय सैनिकों को उन्हें उनका खोया हुआ हक़, शस्त्र और सम्मान वापस दिलाएं और अगर आप के पास हमारे देशभक्त सैनिकों के लिए 1 मिनट का भी समय नहीं हैं तो हमें माफ़ करें, हम तो अपने देश, धर्म और सैनिकों के लिए कुछ भी करेंगे...

केवल रावलपिंडी पर मत थोपो अपने पापों को
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को
अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है
और कश्मीर कि घाटी देखो खून से सन जाती है |

पकड़ गर्दनें उनको खींचों बाहर खुले उजाले में
चाहे कातिल सात समंदर पार छुपा हो ताले में
इन सब षड्यंत्रों से परदा उठना बहुत जरुरी है
पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है

इनके परिवार को "जिया-उल-हक़" की तरह का पुरस्कार तो नहीं मिलने वाला हैं...लेकिन हम क्रांतिकारियों की तरफ से इनके लिए || भावपूर्ण श्रद्धांजलि ||

श्रीनगर आतंकी हमले में शहीद हुए बहादुर जवानों के नाम :

1.शहीद कांस्टेबल ओम प्रकाश निवासी सिहोर, मध्य प्रदेश।
2.शहीद कांस्टेबल पेरुमल निवासी मधुरा, तमिलनाडु।
3.शहीद कांस्टेबल सुभाष सौरव निवासी रांची, झारखंड।
4.शहीद कांस्टेबल सतीसा निवासी मंदिया, कर्नाटक।
5.शहीद एएसआइ एबी सिंह निवासी उज्जैन, मध्य प्रदेश।
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आप सोचते होंगे कि कैसे 2 आतंकवादी हमारे 5-5 वीर सैनिकों को मार देते हैं...

सच तो यह है के हमारे भारतीय सैनिकों के जैसे वीर इस पूरे संसार में नहीं हैं, लेकिन हमारी हिन्दू और भारत की दुश्मन कांग्रेस सरकार ने कश्मीर के गद्दारों के कहने पर वहाँ पर से सैनिको से बंदूकें छीन ली हैं और उन्हें हाथ मैं डंडे दे दिए हैं, अब आप ही सोचें के जो जवान हमारी रक्षा के लिए अपनी नींद, भूख और प्राणों तक की चिंता नहीं करते, उन जवानों के पास आज खुद कि रक्षा के लिए हाथ में बंदूकें नहीं हैं, और वो डंडों और गुलेलों से लड़ने के लिए मजबूर हैं, जिस के कारण हर दुसरे दिन कभी 5 तोह कभी 10 जवान शहीद हो रहे हैं...

दोस्तों, हमारी भारतीय सेना के सैनिकों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है, अब हमारी बारी है, अगर आप सच्चे देशभक्त हैं और सच में हमारे भारतीय सैनिकों का दिल से सम्मान करते हैं तो कृपया कर के 1 मिनट का समय दें और जितना हो सके, अपनी वाल पे, अपने पेज की वाल पे, अपने मित्र की वाल पे, ज़्यादा से ज़्यादा इस फोटो को शेयर करें, और हमारे भारतीय सैनिकों को उन्हें उनका खोया हुआ हक़, शस्त्र और सम्मान वापस दिलाएं और अगर आप के पास हमारे देशभक्त सैनिकों के लिए 1 मिनट का भी समय नहीं हैं तो हमें माफ़ करें, हम तो अपने देश, धर्म और सैनिकों के लिए कुछ भी करेंगे...

केवल रावलपिंडी पर मत थोपो अपने पापों को
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को
अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है
और कश्मीर कि घाटी देखो खून से सन जाती है |

पकड़ गर्दनें उनको खींचों बाहर खुले उजाले में
चाहे कातिल सात समंदर पार छुपा हो ताले में
इन सब षड्यंत्रों से परदा उठना बहुत जरुरी है
पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है

इनके परिवार को "जिया-उल-हक़" की तरह का पुरस्कार तो नहीं मिलने वाला हैं...लेकिन हम क्रांतिकारियों की तरफ से इनके लिए || भावपूर्ण श्रद्धांजलि ||

श्रीनगर आतंकी हमले में शहीद हुए बहादुर जवानों के नाम :

1.शहीद कांस्टेबल ओम प्रकाश निवासी सिहोर, मध्य प्रदेश।
2.शहीद कांस्टेबल पेरुमल निवासी मधुरा, तमिलनाडु।
3.शहीद कांस्टेबल सुभाष सौरव निवासी रांची, झारखंड।
4.शहीद कांस्टेबल सतीसा निवासी मंदिया, कर्नाटक।
5.शहीद एएसआइ एबी सिंह निवासी उज्जैन, मध्य प्रदेश।

सोमवार, 19 नवंबर 2012

इंदिरा प्रियदर्शिनी :भारत का ध्रुवतारा

इंदिरा प्रियदर्शिनी :भारत का ध्रुवतारा 

जब ये शीर्षक मेरे मन में आया तो मन का एक कोना जो सम्पूर्ण विश्व में पुरुष सत्ता के अस्तित्व को महसूस करता है कह उठा कि यह उक्ति  तो किसी पुरुष विभूति को ही प्राप्त हो सकती है  किन्तु तभी आँखों के समक्ष प्रस्तुत हुआ वह व्यक्तित्व जिसने समस्त  विश्व में पुरुष वर्चस्व को अपनी दूरदर्शिता व् सूक्ष्म सूझ बूझ से चुनौती दे सिर झुकाने को विवश किया है .वंश बेल को बढ़ाने ,कुल का नाम रोशन करने आदि न जाने कितने ही अरमानों को पूरा करने के लिए पुत्र की ही कामना की जाती है किन्तु इंदिरा जी ऐसी पुत्री साबित हुई जिनसे न केवल एक परिवार बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र गौरवान्वित अनुभव करता है  और  इसी कारण मेरा मन उन्हें ध्रुवतारा की उपाधि से नवाज़ने का हो गया और मैंने इस पोस्ट का ये शीर्षक बना दिया क्योंकि जैसे संसार के आकाश पर ध्रुवतारा सदा चमकता रहेगा वैसे ही इंदिरा प्रियदर्शिनी  ऐसा  ध्रुवतारा थी जिनकी यशोगाथा से हमारा भारतीय आकाश सदैव दैदीप्यमान  रहेगा।
       १९ नवम्बर १९१७ को इलाहाबाद के आनंद भवन में जन्म लेने वाली इंदिरा जी के लिए श्रीमती सरोजनी नायडू जी ने एक तार भेजकर कहा था -''वह भारत की नई आत्मा है .''
       गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने उनकी शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् शांति निकेतन से विदाई के समय नेहरु जी को पत्र में लिखा था -''हमने भारी मन से इंदिरा को  विदा  किया है .वह इस स्थान की शोभा थी  .मैंने उसे निकट से देखा है  और आपने जिस प्रकार उसका लालन पालन किया है उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जा सकता .''   सन १९६२ में चीन ने विश्वासघात करके भारत  पर आक्रमण किया था तब देश  के कर्णधारों की स्वर्णदान की पुकार पर वह प्रथम भारतीय महिला थी जिन्होंने अपने समस्त पैतृक  आभूषणों को देश की बलिवेदी पर चढ़ा दिया था इन आभूषणों में न जाने कितनी ही जीवन की मधुरिम स्मृतियाँ  जुडी हुई थी और इन्हें संजोये इंदिरा जी कभी कभी प्रसन्न हो उठती थी .पाकिस्तान युद्ध के समय भी वे सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतु युद्ध के अंतिम मोर्चों तक निर्भीक होकर गयी .
आज देश अग्नि -५ के संरक्षण  में अपने को सुरक्षित महसूस कर रहा है इसकी नीव में भी इंदिरा जी की भूमिका को हम सच्चे भारतीय ही महसूस कर सकते हैं .भूतपूर्व राष्ट्रपति और भारत में मिसाइल कार्यक्रम  के जनक डॉ.ऐ.पी.जे अब्दुल कलाम बताते हैं -''१९८३ में केबिनेट ने ४०० करोड़ की लगत वाला एकीकृत मिसाइल कार्यक्रम स्वीकृत किया .इसके बाद १९८४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी डी.आर.डी एल .लैब  हैदराबाद में आई .हम उन्हें प्रैजन्टेशन दे रहे थे.सामने विश्व का मैप टंगा था .इंदिरा जी ने बीच में प्रेजेंटेशन रोक दिया और कहा -''कलाम !पूरब की तरफ का यह स्थान देखो .उन्होंने एक जगह पर हाथ रखा ,यहाँ तक पहुँचने वाली मिसाइल कब बना सकते हैं ?"जिस स्थान पर उन्होंने हाथ रखा था वह भारतीय सीमा से ५००० किलोमीटर दूर था .
    इस तरह की इंदिरा जी की देश प्रेम से ओत-प्रोत घटनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है और हम आज देश की सरजमीं पर उनके प्रयत्नों से किये गए सुधारों को स्वयं अनुभव करते है,उनके खून की एक एक बूँद हमारे देश को नित नई ऊँचाइयों पर पहुंचा रही है और आगे भी पहुंचती रहेगी.
                  आज का ये दिन हमारे देश के लिए पूजनीय दिवस है और इस दिन हम सभी  इंदिरा जी को श्रृद्धा  पूर्वक  नमन करते है .
              शालिनी कौशिक
           [कौशल ]

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

अफ़सोस ''शालिनी''को खत्म न ये हो पाते हैं .



अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं .
खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं ,
मिली देह इंसान की इनको भेड़िये नज़र आते हैं .

तबाह कर बेगुनाहों को करें आबाद ये खुद को ,
फितरतन इंसानियत के ये रक़ीब बनते जाते हैं .

फराखी इनको न भाए ताज़िर हैं ये दहशत के ,
मादूम ऐतबार को कर फ़ज़ीहत ये कर जाते हैं .

न मज़हब इनका है कोई ईमान दूर है इनसे ,
तबाही में मुरौवत की सुकून दिल में पाते हैं .

इरादे खौफनाक रखकर आमादा हैं ये शोरिश को ,
रन्जीदा कर जिंदगी को मसर्रत उसमे पाते हैं .

अज़ाब पैदा ये करते मचाते अफरातफरी ये ,
अफ़सोस ''शालिनी''को खत्म न ये हो पाते हैं .

शब्दार्थ :-फराखी -खुशहाली ,ताजिर-बिजनेसमैन ,
मादूम-ख़त्म ,फ़ज़ीहत -दुर्दशा ,मुरौवत -मानवता ,
शोरिश -खलबली ,रंजीदा -ग़मगीन ,मसर्रत-ख़ुशी ,
अज़ाब -पीड़ा-परेशानी .

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

रविवार, 18 मार्च 2012

क्या यही लोकतंत्र है?

   क्या यही लोकतंत्र है?
NULL Indians walk on a railway track in Mumbai, India, Thursday , March 15, 2012. Indian Railways Minister Dinesh Trivedi announced the first railway fare hike in eight years Wednesday, only to be shot down moments later by Congress party leader Mamata...

अमेरिका के  राष्ट्रपति अब्राहम  लिंकन की सर्वप्रसिद्ध परिभाषा  इस प्रकार है-
"प्रजातंत्र जनता का,जनता द्वारा तथा जनता के लिए शासन है."
                 
            और आज भारत में यही जनता शासन कर रही है .आज से नहीं बल्कि २६ जनवरी १९५० से जिस दिन हमारा गणतंत्र लागू हुआ था किन्तु क्या हम वास्तव  में इस शासन को अपने यहाँ महसूस  कर सकते हैं?शायद नहीं कारण साफ है जिन दलों के आधार पर हम अपने प्रतिनिधि  चुन  कर सरकार  बनाते  हैं जब उन दलों में ही लोकतंत्र नहीं है तो हम कैसे सच्चा लोकतंत्र अपने देश में कह सकते हैं?
              माननीय रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी जी ने इसबार  पूरे आत्मविश्वास से रेल बजट प्रस्तुत किया किन्तु उन्हें बदले में उन्ही के दल तृणमूल की प्रमुख ममता बैनर्जी  ने रेल किराया बढ़ाने को लेकर पद से इस्तीफा देने का फरमान जारी कर दिया .
           मैं पूछती  हूँ ममता जी से क्या उन्हें ऐसा करने का हक़ था ?जब दिनेश त्रिवेदी जी रेल मंत्री हैं और अपना बजट सदन में प्रस्तुत कर चुके हैं तो क्या सदन जिका कार्य उस पर विचार करना है क्या इस सम्बन्ध में निर्णय लेने  में अक्षम था?
       अब वे मुकुल राय जी का नाम इस पद हेतु प्रस्तावित कर रही हैं क्या उनके किसी कार्य को अपने सिद्धांतों के खिलाफ होने  पर क्या उनसे इस्तीफ़ा नहीं मांगेगी?क्या इस तरह वे स्वयं को भारतीय लोकतंत्र से ऊपर नहीं मानकर चल रही हैं?इस समय  दिनेश त्रिवेदी जी उनके अधीनस्थ पार्टी कार्यकर्ता नहीं हैं बल्कि भारतीय संविधान के महत्व पूर्ण केन्द्रीय मंत्री का पद भार संभाले हुए हैं और ऐसे में रेल बजट में क्या कमी है क्या जनता के साथ गलत हो रहा है ये देखना सदन की जिम्मेदारी है और ममता जी को ये कार्य उन्ही पर छोड़ देना चाहिए .अन्यथा हमें यही कहना होगा कि -
''लोकतंत्र मूर्खों का,मूर्खों  द्वारा और मूर्खों के लिए शासन है.''


शालिनी  कौशिक 
{कौशल}

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

आजाद हिंद तू फ़ौज बना

अभी वतन आजाद नही, आजाद हिंद तू फ़ौज बना!!
 

श्रम करके संध्या को घर में, अपने बिस्तर पर आया था
उस दिन ना जाने क्यों मैंने, मन में भारीपन पाया था

जब आँख लगी तो सपने में लहराता तिरंगा देखा था
राष्ट्र ध्वजा की गोद लिए, भारत माँ का बेटा था

जयहिंद का नारा बोल बोल के आकर वह चिल्लाये थे
उस रात स्वंय बाबू सुभाष, मेरे सपने में आये थे

बोले भारत भूमि में जन्मा है, तू कलंक क्यों लजाता है
राग द्वेष की बातो पर, क्यों अपनी कलम चलाता है

इन बातो पर तू कविता लिख, मै विषय तुम्हे बतलाता हूँ
वर्तमान के भारत की मै,झांकी तुझे दिखाता हूँ

हमने पूनम के चंदा को राहू को निगलते देखा है
हमने शीतल सरिता के पानी को उबलते देखा है

गद्दारों की लाशों को चन्दन से जलते देखा है
भारत माता के लालों को शोलो पर चलते देखा है

देश भक्त की बाहों में सर्पों को पलते देखा है
हमने गिरगिट सा इंसानों को रंग बदलते देखा है

जो कई महीनो से नही जला हमने वो चूल्हा देखा है
हमने गरीब की बेटी को फाँसी पर झूला देखा है

हमने दहेज़ बिन ब्याही बहुओ को रोते देखा है
मजबूर पिता को गर्दन बल पटरी पर सोते देखा है

देश द्रोही गद्दारों के चहरे पर लाली देखी है
हमने रक्षा के सौदों में होती हुई दलाली देखी है

खादी के कपड़ो के भीतर हमने दिल काला देखा है
इन सब नमक हरामो का,शेयर घोटाला देखा है

हमने तंदूर में नारी को रोटी सा सिकते देखा है
लाल किले के पिछवाड़े, अबला को बिकते देखा है

राष्ट्रता की प्रतिमाओ पर,लगा मकड़ी का जाला देखा है
जनपद वाली बस्ती में हमने कांड हवाला देखा है

आतंकवाद के कदमों को इस हद तक बढ़ते देखा है
अमरनाथ में शिव भक्तों को हमने मरते देखा है

होटल ताज के द्वारे, उस घटना को घटते देखा है
माँ गंगा की महाआरती में, बम फटते देखा है

हमने अफजल की फाँसी में संसद को सोते देखा है
जो संसद पर बलिदान हुए, उनका घर रोते देखा है

उन सात पदों के सूरज को भारत में ढलते देखा है
नक्शलवाद की ज्वाला में, मैंने देश को जलते देखा है

आजादी के दिन दिल्ली,बन गई दुल्हनिया देखी है
15 अगस्त के दिन भोलू की भूखी मुनिया देखी है

हमने संसद के अन्दर राष्ट्र की भ्रस्टाचारी देखी है
हमने देश के साथ स्वयं, होती गद्दारी देखी है

ये सारी बाते सपने में नेता जी कहते जाते थे
उनकी आँखों से झर झर आंसू भी बहते जाते थे

बोले जा बेटे भारत माता के, अब तू सोते लाल जगा
अभी वतन आजाद नही, आजाद हिंद तू फ़ौज बना
.


Manzoor Khan Pathan
Contact  Numbers  :   92528-84207

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

रक्षाबंधन का महत्व

रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधनका शास्त्रीय महत्व !

अर्थ एवं कारण

१. ‘बहनकी जीवनभर रक्षा करूंगा’, यह वचन देकर भाई-बहनसे धागा बंधवाता है एवं उसे वचनबद्ध करनेके लिए बहन धागा बांधती है । ‘बहन एवं भाई इस संबंधमें बंधे रहें’, इसलिए यह दिन इतिहासकालसे प्रचलित है ।
२. राखी बहन एवं भाईके पवित्र बंधनका प्रतीक है ।
३. जैसे बहनकी रक्षाके लिए भाई धागा बंधवाकर वचनबद्ध होता है, उसी प्रकार बहन भी भाईकी रक्षाके लिए, ईश्वरके चरणोंमें विनती करती है ।
४. इस दिन श्री गणेश एवं श्री सरस्वतीदेवीका तत्त्व पृथ्वीतलपर अधिक मात्रामें आता है, जिसका लाभ दोनोंको ही होता है ।
५. बहनका भक्तिभाव, उसकी ईश्वरके प्रति तीव्र उत्कंठा एवं उसपर जितनी गुरुकृपा अधिक, उतना उसके भाईके लिए अर्ततासे की गई पुकारका परिणाम होता है और भाईकी आध्यात्मिक प्रगति होती है ।

बहन एवं भाईके बीच लेन-देन

बहन एवं भाई दोनोंमें साधारणत: ३० प्रतिशत लेन-देन रहता है । राखी पूर्णिमा जैसे त्यौहारोंके माध्यमसे उनमें लेन-देन घटता है, अर्थात् वे स्थूल स्तरपर एक-दूसरेसे बंधते हैं; परंतु सूक्ष्म-स्तरपर एकदूसरेका लेन-देनका चुकाते हैं । अत: दोनोंको ही इस अवसरका लाभ उठाना चाहिए ।

राखी कैसी होनी चाहिए  ?


     समाचार पत्रों में छपी खबरों के अनुसार सोनिया गाँधी को वाईरल फिभर हुआ था ! फिर बाद में खबर आयी कि सोनिया जी अपनी शल्य-क्रिया करवाने विदेश गयी हैं ! कहाँ गयी पता नहीं ? परन्तु फिर खबर आयी कि अमेरिका में उस्तरा चलवा रही हैं ! अब सहज प्रश्न उठता है कि वाईरल फिभर के लिए शल्य-क्रिया (ओपरेशन) की क्या आवश्यकता है ? फिर किसी ने बताया कि कैंसर हो गया है !

अब इस बीमारी कि खबर के बाद कहा गया कि देश सम्हालने का जिम्मा वो राहुल को सौंप गयी हैं ! परन्तु बाद में खबर आयी कि राहुल और प्रियंका भी साथ गए हैं ! और बढेरा भी ! फिर यह देश तो अब कागजों पर चल रहा है ! पता नहीं बेचारे मनमोहन अब क्या करेंगे ?

भाई आप लोग तो कुछ भी कयास लगाओ मुझे उससे कोई मतलब नहीं है ! लेकिन मेरी अंतर्दृष्टि कहती है कि यह देश में आसन्न संकटों के कारण उपस्थित प्राण-भय के कारण यह होसियारी से किया गया पलायन है ! यह देश से भागने की दूसरी कोशिश है सोनिया (एड्विग एन्टोनिया एल्बिना मायिनो) गाँधी का ! पहली कोशिश तब की गयी जब स्विस बैंकों में जमा धन को ठिकाने लगाने ८ जून को निजी विमान से स्विट्ज़रलैंड गयी थी अपने सभी खाताधारी सम्बन्धियों के साथ !

आज कौन क्या गा रहा है !

1. मनमोहन सिंह..."मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं, बड़ी मुश्किल में हूँ मैं किधर
जाऊं"
2-सोनिया गाँधी ... "मैं चाहे ये करूं मैं चाहे वो करूं मेरी मर्जी"
3-राहुल गाँधी ..."मैं राही अनजान राहों का, ओ यारो मेरा नाम अनजाना"
4-दिग्विजय सिंह..."मुझको यारो ...माफ़ करना मैं नशे में हूँ"
5-राहुल-दिग्विजय ..."ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे"
6-कनिमोझी ..."मैं तो भूल चली बाबुल का देश, तिहाड़ जेल प्यारा लगे"
7-करुणानिधि ..."बाबुल की दुआएं लेती जा,जा तुझको घोटालों का ताज मिले"
8-बाबा रामदेव ..."सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा"
9-अन्ना हजारे ..."जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं"
10-सभी देशभक्त भारतीय ..."इतनी शक्ति हमें देना दाता,मन का विश्वास कमजोर हो
ना"
11 कम्युनिस्ट .... यह लाल रंग कब हमे छोडेगा.

email from 
NILKANTH KORANNE

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

सही निर्वाचन


सनातन संस्कृति की मूर्धन्य पत्रिका "कल्याण" के अंक ८ (अगस्त २०११) में वर्तमान राजनीति को झकझोर देने वाली , श्री मान सुरेन्द्र कुमार जी द्वारा प्रेषित ,  एक अत्यंत ही शिक्षाप्रद घटना का वर्णन प्रकाशित हुआ है .....
स्वनामधन्य अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने एक ऐसे व्यक्ति को अपने देश का रक्षामंत्री नियुक्त किया , जिसने हर मौके - बेमौके पर लिंकन साहब की कटु आलोचना की . राष्ट्रपति के निकटस्थ प्रायः सभी शुभ चिंतकों ने उन्हें ऐसी नियुक्ति न करने की सलाह दी , हर तरह से उन्हें समझाया कि जो व्यक्ति हमेशा आपकी कटु आलोचना , और वह भी हर स्तर पर , करते आया है उस व्यक्ति को आपने इतने महत्वपूर्ण पद पर क्यों आसीन किया   है ?
अब ज़रा ध्यान से पढ़ें :
लिंकन साहब ने कहा कि मुझे "लिंकन भक्त" नहीं बल्कि "राष्ट्र भक्त" और योग्य व्यक्ति इस पद के लिए चाहिए , और इनसे योग्य व्यक्ति इस  दायित्व के लिए कोई हो ही नहीं सकता 
अब मेरी बात :

सोमवार, 1 अगस्त 2011

लाखों महिलाओं के कंधे पर टिका करोड़ों का व्यापार है पर फिर भी महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में कोई सुधार नहीं,




छो…छोको भूंजी लोक पतर तुड़ले लागसी भोक….” ( हम लोग गरीब भुंजिया आदिवासी, पत्ता तोड़ते हुए भूख लगती है ) नुआपाडा जिले के सीनापाली गांव में रहने वाली 55 वर्षीय पहनी मांझी को जंगल में तेदूपत्ता तोड़ते हुए जब भूख लगती है तो वो अपना ध्यान बंटाने के लिए यहीं उड़ीया लोकगीत गुनगुनाती हैं.


अप्रैल और मई महीने की चिलचिलाती धूप में जब हम अपने वातानुकुलित कमरे में बैठे आराम फरमा रहे होते हैं, उस समय इस इलाके की महिलाएं और बच्चे जंगल-जंगल भटक कर तेंदूपत्ता तोड़ रहे होते हैं. यह पत्ता ही है, जिसे बेचने के बाद उनके घरों में चुल्हा जल पाता है.


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