रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधनका शास्त्रीय महत्व !
अर्थ एवं कारण
१. ‘बहनकी जीवनभर रक्षा करूंगा’, यह वचन देकर भाई-बहनसे धागा बंधवाता है एवं उसे वचनबद्ध करनेके लिए बहन धागा बांधती है । ‘बहन एवं भाई इस संबंधमें बंधे रहें’, इसलिए यह दिन इतिहासकालसे प्रचलित है ।
२. राखी बहन एवं भाईके पवित्र बंधनका प्रतीक है ।
३. जैसे बहनकी रक्षाके लिए भाई धागा बंधवाकर वचनबद्ध होता है, उसी प्रकार बहन भी भाईकी रक्षाके लिए, ईश्वरके चरणोंमें विनती करती है ।
४. इस दिन श्री गणेश एवं श्री सरस्वतीदेवीका तत्त्व पृथ्वीतलपर अधिक मात्रामें आता है, जिसका लाभ दोनोंको ही होता है ।
५. बहनका भक्तिभाव, उसकी ईश्वरके प्रति तीव्र उत्कंठा एवं उसपर जितनी गुरुकृपा अधिक, उतना उसके भाईके लिए अर्ततासे की गई पुकारका परिणाम होता है और भाईकी आध्यात्मिक प्रगति होती है ।
२. राखी बहन एवं भाईके पवित्र बंधनका प्रतीक है ।
३. जैसे बहनकी रक्षाके लिए भाई धागा बंधवाकर वचनबद्ध होता है, उसी प्रकार बहन भी भाईकी रक्षाके लिए, ईश्वरके चरणोंमें विनती करती है ।
४. इस दिन श्री गणेश एवं श्री सरस्वतीदेवीका तत्त्व पृथ्वीतलपर अधिक मात्रामें आता है, जिसका लाभ दोनोंको ही होता है ।
५. बहनका भक्तिभाव, उसकी ईश्वरके प्रति तीव्र उत्कंठा एवं उसपर जितनी गुरुकृपा अधिक, उतना उसके भाईके लिए अर्ततासे की गई पुकारका परिणाम होता है और भाईकी आध्यात्मिक प्रगति होती है ।
बहन एवं भाईके बीच लेन-देन
बहन एवं भाई दोनोंमें साधारणत: ३० प्रतिशत लेन-देन रहता है । राखी पूर्णिमा जैसे त्यौहारोंके माध्यमसे उनमें लेन-देन घटता है, अर्थात् वे स्थूल स्तरपर एक-दूसरेसे बंधते हैं; परंतु सूक्ष्म-स्तरपर एकदूसरेका लेन-देनका चुकाते हैं । अत: दोनोंको ही इस अवसरका लाभ उठाना चाहिए ।
राखी कैसी होनी चाहिए ?
राखीकी तरंगोंसे बहन और भाई दोनोंको लाभ होता है । इस कारण दिखाऊ राखी लेनेकी अपेक्षा ईश्वरीय तत्त्व संजोए रखनेवाली राखी लेनी चाहिए, अन्यथा उन राखियोंके त्रिगुणोंका दोनोंपर परिणाम होता है और उनकी वृत्ति वैसी बनती है । इसलिए सनातनकी ओरसे सात्त्विक राखी बनाई गई है ।
भाईको राखी बांधते समय बहन द्रौपदी समान भाव रखिए
कृष्णकी उंगलीसे बहनेवाले रक्तप्रवाहको रोकनेके लिए द्रौपदीने अपनी साडीका आंचल फाडकर उनकी उंगलीपर बांधा था । बहन अपने भाईके कष्टको कदापि सहन नहीं कर सकती है । उसपर आए संकट दूर करनेके लिए वह कुछ भी कर सकती है । राखी पूर्णिमाके दिन प्रत्येक बहन अपने भाईको राखी बांधते समय यही भाव रखें ।
रक्षाबंधनके दिन अपेक्षा- विरहित राखी बांधनेका महत्त्व
रक्षाबंधनके दिन यदि बहन भाईसे किसी वस्तुकी अपेक्षा रखती है, तो उस दिन मिलनेवाले आध्यात्मिक लाभसे वंचित रहती है । यह दिन आध्यात्मिक दृष्टिसे लेन-देन घटानेके लिए होता है । अपेक्षा रखकर वस्तुकी प्राप्ति करनेसे लेन-देन ३ गुना बढता है ।
१. अपेक्षाके कारण वह वातावरणमें विद्यमान प्रेमभाव एवं आनंदकी तरंगोंका लाभ नहीं प्राप्त कर सकती है ।
२. आध्यात्मिक दृष्टिसे १२ प्रतिशत हानि होती है । इसलिए प्रत्येक बहन अपने भाईको निःस्वार्थ रूपसे राखी बांधकर उसका आशीर्वाद ले । इससे लेन-देन घट जाता है ।
१. अपेक्षाके कारण वह वातावरणमें विद्यमान प्रेमभाव एवं आनंदकी तरंगोंका लाभ नहीं प्राप्त कर सकती है ।
२. आध्यात्मिक दृष्टिसे १२ प्रतिशत हानि होती है । इसलिए प्रत्येक बहन अपने भाईको निःस्वार्थ रूपसे राखी बांधकर उसका आशीर्वाद ले । इससे लेन-देन घट जाता है ।
रक्षाबंधनके दिन उपहार देनेका महत्त्व
रक्षाबंधनके दिन प्रत्येक भाई अपनी बहनको उपहार देता है । उसका स्थूल एवं सूक्ष्म कारण आगे दिए अनुसार है ।
१. स्थूल वस्तुके कारण दूसरेका सतत् स्मरण रहता है ।
२. लेन-देन एक प्रतिशत कम होता है ।
३. भाईके प्रति बहनके स्नेहका मोल भाई नहीं लगा सकता; परंतु स्थूल माध्यमद्वारा कुछ प्रेम देकर उसे चुकानेका प्रयत्न कर सकता है ।
४. उपहार देते समय भाईके मनमें ईश्वरके प्रति यदी भाव है, तो बहनपर उसका प्रभाव पडता है । इसलिए भाईसे बहन उपहार न मांगे । वह स्वेच्छासे दे, तो स्वीकार ले; अन्यथा न लेना अधिक श्रेयस्कर होगा ।
१. स्थूल वस्तुके कारण दूसरेका सतत् स्मरण रहता है ।
२. लेन-देन एक प्रतिशत कम होता है ।
३. भाईके प्रति बहनके स्नेहका मोल भाई नहीं लगा सकता; परंतु स्थूल माध्यमद्वारा कुछ प्रेम देकर उसे चुकानेका प्रयत्न कर सकता है ।
४. उपहार देते समय भाईके मनमें ईश्वरके प्रति यदी भाव है, तो बहनपर उसका प्रभाव पडता है । इसलिए भाईसे बहन उपहार न मांगे । वह स्वेच्छासे दे, तो स्वीकार ले; अन्यथा न लेना अधिक श्रेयस्कर होगा ।
भाईद्वारा सात्त्विक उपहार देनेका महत्त्व
१. सात्त्विक वस्तुओंका उस व्यक्तिपर व्यावहारिक परिणाम नहीं होता है ।
२. सात्त्विक वस्तु देनेवाले एवं लेनेवाले दोनोंको ही लाभ होता है ।
३. सात्त्विक कृतिद्वारा लेन-देन घटकर नया लेन-देन निर्माण नहीं होता है । इसलिए बंधुओ, सात्त्विक उपहार देकर बहनोंके कर्मबंधनसे मुक्त हो जाइए । देवताओंका अपमान रोकिए !
आजकल राखीपर ‘ॐ' अथवा देवी-देवताओंके चित्र रहते हैं । राखीका उपयोग हो जानेपर राखी इधर-उधर पडी रहती है । इससे आस्थावेंâद्रका अपमान होता है और पाप लगता है । इसे रोकनेके लिए पानीमें राखीका विसर्जन करें !
(संदर्भ : सनातन संस्था का प्रकाशन : त्योहार, धार्मिक उत्सव व व्रत)
२. सात्त्विक वस्तु देनेवाले एवं लेनेवाले दोनोंको ही लाभ होता है ।
३. सात्त्विक कृतिद्वारा लेन-देन घटकर नया लेन-देन निर्माण नहीं होता है । इसलिए बंधुओ, सात्त्विक उपहार देकर बहनोंके कर्मबंधनसे मुक्त हो जाइए । देवताओंका अपमान रोकिए !
आजकल राखीपर ‘ॐ' अथवा देवी-देवताओंके चित्र रहते हैं । राखीका उपयोग हो जानेपर राखी इधर-उधर पडी रहती है । इससे आस्थावेंâद्रका अपमान होता है और पाप लगता है । इसे रोकनेके लिए पानीमें राखीका विसर्जन करें !
(संदर्भ : सनातन संस्था का प्रकाशन : त्योहार, धार्मिक उत्सव व व्रत)
श्री. सतीश कोचरेकर
धर्मशक्ती सेना
युवा शाखा
हिंदू जनजागृती समिती , मुंबई
९३२४५२५४९६
3 टिप्पणियां:
raksha bandhan ke shubhavsar par sateesh ji ki ye prastuti bahut sarahniy hai aur sahi roop me aaj hindustan kee aawaz hai.aabhar
बढ़िया पोस्ट और अच्छे सुझाव!
achha hai...
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
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