सम्मानित स्वजन, हिंदुस्तान की आवाज़ द्वारा जीवनदायिनी माँ के बारे में लेखन प्रतियोगिता आयोजित की गयी थी, समय सीमा के अन्दर जो प्रविष्टियाँ आई उसे "हिंदुस्तान की आवाज़-आपकी धरोहर" में प्रकाशित किया जा रहा है. आप लोग ऐसी ही प्रतियोगिताओ में अपनी भागीदारी देकर आगे भी सहभागिता निभाते रहे. आप सभी को शुभकामना.
सबसे खुशनसीब -- shikha p. kaushik
औलाद जो सदा माँ के करीब है ;
सारी दुनिया में वो ही खुशनसीब है .
जिसको परवाह नहीं माँ के सुकून की ;
शैतान का वो बंदा खुद अपना रकीब है .
दौलतें माँ की दुआओं की नहीं सहेजता
इंसान ज़माने में वो सबसे गरीब है .
जो लबों पे माँ के मुस्कान सजा दे
दिन रात उस बन्दे के दिल में मनती ईद है .
माँ जो खफा कभी हुई गम-ए -बीमार हो गए ;
माँ की दुआ की हर दवा इसमें मुफीद है .
है शुक्र उस खुदा का जिसने बनाई माँ !
मुबारक हरेक लम्हा जब उसकी होती दीद है .
शिखा कौशिक
माँ ---

ARCHANA GANGWAR
जब मै जागू सारी रात
लिए गोद अपनी संतान
आंसू लुढ़क आये थे गाल पर
जब मै सोचू बस ये बात .
क्या मेरी माँ भी जागी होगी
रात आँखों में काटी होगी
बड़े जतन से पाला होगा
अरमानो से ढाला होगा …..
मुझे रोते जो सुन लिया होगा
हर काम को छोड़ दिया होगा
बाहों में भर लिया होगा
होंठो से चूम लिया होगा
अदाओं में बचपना लाके
मुझ को हंसा दिया होगा
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मां ----राजेन्द्र स्वर्णकार
हृदय में पीड़ा छुपी तुम्हारे , मुखमंडल पर मृदु - मुसकान !
पलकों पर आंसू की लड़ियां , अधरों पर मधु - लोरी - गान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां ! तुम पर तन मन धन बलिदान !
तुम पर जग न्यौछावर माता ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान!!
कष्ट मौत का सह' जीवन देती कि नियम सृष्टि का पले !
मात्र यही अभिलाषा और आशीष कि बच्चे फूले - फले !
तेरी गोद मिली, वे धन्य हैं मां ! …क्या इससे बड़ा वरदान ?
तुम पर जग न्यौछावर माता ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान!!
तू सर्दी - गर्मी , भूख - प्यास सह' हमें बड़ा करती है मां !
तेरी देह त्याग तप ममता स्नेह की मर्म कथा कहती है मां !
ॠषि मुनि गण क्या , देव दनुज सब करते हैं तेरा यशगान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान !!
भेदभाव माली क्या जाने , जिसने स्वयं ही बीज लगाए !
फल कर पेड़ ; फूल फल दे या केवल कंटक शूल चुभाए !
करुणा स्नेह आशीष सभी में बांटे तुमने एक समान !
तुम पर जग न्यौछावर माता ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान!!
तेरा जीवन - चरित निहार' स्वर्ग से पुष्प बरसते हैं मां !
तुम- सा क़द - पद पाने को स्वयं भगवान तरसते हैं मां !
चरण कमल छू'कर मां ! तेरे , धन्य स्वयं होते भगवान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
राजस्थानी रचना मा ई मिंदर री मूरत
जग खांडो , अर ढाल है मा !
टाबर री रिछपाळ है मा !
जायोड़ां पर आयोड़ी
विपतां पर ज्यूं काळ है मा !
दुख - दरियाव उफणतो ; जग
वाळां आडी पाळ है मा !
मैण जिस्यो हिरदै कंवळो
फळ - फूलां री डाळ है मा !
जग बेसुरियो बिन थारै
तूं लय अर सुर - ताल है मा !
बिरमा लाख कमाल कियो
सैंस्यूं गजब कमाल है मा !
लिछमी सुरसत अर दुरगा
था'रा रूप विशाल है मा !
मा ई मिंदर री मूरत
अर पूजा रो थाळ है मा !
जिण काळजियां तूंनीं ; बै
लूंठा निध कंगाल है मा !
न्याल ; जका मन सूं पूछै
- था'रो कांईं हाल है मा !
धन कुणसो था'सूं बधको ?
निरधन री टकसाल है मा !
राजेन्दर था'रै कारण
आछो मालामाल है मा !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
राजेन्द्र स्वर्णकार
फ़ोन : 0151 2203369
मोबाइल : 09314682626
हमने जब जब माँ को देखा -- Shalini kaushik
हमने जब जब माँ को देखा
ख्याल ये मन में आया.
हमें बनाने को ही माँ ने
मिटा दी अपनी काया.
बचपन में माँ हाथ पकड़कर
सही बात समझाती
गलत जो करते आँख दिखाकर
अच्छी डांट पिलाती.
माँ की बातों पर चलकर ही
जीवन में सब पाया
हमें बनाने को ही माँ ने
मिटा दी अपनी काया.
समय परीक्षा का जब आता
नींद माँ की उड़ जाती
हमें जगाने को रात में
चाय बना कर लाती
माँ का संबल पग-पग पर
मेरे काम है आया.
हमें बनाने को ही माँ ने
मिटा दी अपनी काया.
जीवन में सुख दुःख सहने की
माँ ने बात सिखाई,
सबको अपनाने की शिक्षा
माँ ने हमें बताई.
कठिनाई से कैसे लड़ना
माँ ने हमें सिखाया.
हमें बनाने को ही माँ ने
मिटा दी अपनी काया.
शालिनी कौशिक
http://shalinikaushik2.blogspot.com
माँ के बारे मेँ जितना कहा जाये उतना ही कम है.....परमात्मा की अद्भुत अभिव्यक्ति है माँ।
ममता का सागर है माँ। इतनी विराट है माँ कि पिता की अलग से व्याख्या ही
नहीँ की जा सकती......
पिता भी उसी ममत्व मेँ समा जाते हैँ
प्रेम की पराकाष्ठा है माँ
सत्य तो यह है कि एक सीमा के बाद शब्द भी असमर्थ हो जाते हैँ.....माँ के
संबंध मेँ कहने को
बड़ी इच्छा है
मैँने कुछ पंक्तियाँ लिखी हैँ
अपनी माँ को समर्पित.............
तेरा अनंत कैसे उपकार मैँ चुकाऊँ
भूला हूँ राह अपनी
घर लौट कैसे आऊँ
बस और क्या कहूँ......
शब्द हैँ असमर्थ
--
Adarsh kumar patel
www.adarsh000.blogspot.com
www.adarsh000-samadhan.blogspot.com
www.sahityasindhu.blogspot.com
" माँ": एक अहसास : एक पूर्णता !
यह समझने की नितांत आवश्यकता है कि आखिर यह "माँ" है क्या ?
माँ है जननी,माँ है पालिनी,माँ है दुलारिनी.माँ क्या नहीं है! माँ तो संतान की छाया है,माँ तो संतान की तस्वीर है,तकदीर है,तज़बीज़ है......
ज़रा सोचिये, माँ नहीं तो हम कहाँ ? हम नहीं तो हमारा "अहम्" कहाँ ? अरे इसी अहम् के लिए तो जीते हैं हम !
यह नक्की मान लें कि माँ का एक-एक अंश हमारे में है.क्या-क्या अलग कर सकते हैं हम ? सच्ची बात तो यही है कि कुछ भी नहीं...... "गीले में सोने और सूखे में सुलाने" की बातें तो पुरानी हो गयी है ना ! पर क्या ऐसी बातों को बदल सकते हैं हम ?
अरे किसी मादा पशु के भी, अगर हम उसके जन्म लेते बच्चे के समय, पास से फटक जाएँ तो वह "दिन में तारे" दिखा देती है. भला क्यों ?वह तो मूक पशु मात्र ही तो है ! परन्तु हम भूल रहे हैं कि वह "माँ" है !!!!
पुरानी कहावत है कि माँ का एक रात का भी क़र्ज़ नहीं चुका सकते हैं हम.पर कोई माँ क़र्ज़ चुकाने का कहती भी है क्या ? अरे सिर्फ वह तो " फ़र्ज़ ही तो याद दिलाती है ना !!
कहाँ हक की लड़ाई लड़ रहे हैं हम ! कर्तव्य की बातें तो हमें सुहाती ही नहीं !!!!
आएये माँ की रक्षा का संकल्प करें.बदले में दुलार ही दुलार,आशीर्वाद ही आशीर्वाद ,प्यार ही प्यार ,पोषण ही पोषण..........
जुगल किशोर सोमानी
जयपुर
आप सभी को हार्दिक शुभकामना व बधाई. आपके सुखमय भविष्य की शुभकामनाओ सहित आपका -- हरीश सिंह