परहित सरिस धर्म नहीं भाई। इसका मर्म यमुनानगर के कनालसी गांव ने बखूबी समझा है। करीब 2500 की आबादी वाले इस गांव की एक तिहाई से ज्यादा आबादी ने नेत्रदान का संकल्प कर नेत्रहीनों की बेनूर दुनिया में रंग भरने का बीड़ा उठाया है। अपने बाद अपनी आंखों से दूसरों की जिंदगी में रोशनी करने का वचन उठाने में कनालसी के बूढ़े ही नहीं बच्चे भी पीछे नहीं हैं। कोशिश है अब इस गांव को शत-प्रतिशत नेत्रदानियों की बस्ती बनाने की। खास बात है कि नेत्रदान की शपथ लेने वालों में 200 बच्चे भी शामिल हैं। गांव के 15 परिवार तो ऐसे हैं, जिनके हर सदस्य ने नेत्रदान के लिए फार्म भरा है। इस महादान मिशन में लगे गांव के उत्साही युवाओं की कोशिश शेष बचे लोगों को भी नेत्रदान संकल्प के लिए रजामंद करने का है। ग्रामीण कनालसी को सौ फीसदी नेत्रदानी गांव बनाने के लक्ष्य को लेकर खासे उत्साहित हैं। क्षेत्र में रोटरी क्लब के असिस्टेंट गवर्नर संदीप जैन बताते हैं कि नेत्रदान को लेकर कनालसी के लोगों का उत्साह अपने आप में एक मिसाल है। बीते कुछ समय के दौरान क्लब के माध्यम से अब तक एक हजार लोग नेत्रदान संकल्प का फार्म भर चुके हैं। इस मुहिम से जुड़े स्थानीय युवा राजबीर का कहना है कि गांव में कुछ लोग लोग ऐसे भी हैं जिनके नेत्रदान संकल्प-पत्र रोटरी क्लब के पास नहीं हैं। इनमें अधिकांश बच्चे हैं जिनके नेत्रदान फार्म उनके माता-पिता ने घरों में ही रखे हैं। नेत्रदान को प्रोत्साहन की इस महती मुहिम को सेवा भारती संस्था से जुड़े 74 वर्षीय कृष्ण गोपाल दत्ता भी बड़े प्रेरणा हैं। दत्ता लोगों को नेत्रदान के लिए आगे आने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं। उन्हें भरोसा है कि जल्द ही कनालसी का हर शख्स अपने आंखों को अमर कर चुका होगा और उनके विश्वास का आधार गांव के लोगों की नेत्रदान संकल्प के प्रति कटिबद्धता है।
-प्रस्तुत आलेख मुझे ख़ुशी गोयल ने भेजा है मुझे यह हिंदुस्तान की आवाज़ के लिए उपयुक्त प्रतीत हुआ इसीलिए इसे मैं यहाँ प्रकाशित कर रही हूँ आप सभी अपने विचार टिपण्णी के माध्यम से भी प्रस्तुत कर सकते हैं और ख़ुशी को उनके मेल आई-डी पर भी भेज सकते हैं .ख़ुशी का मेल-आई डी है -
प्रस्तुति-शालिनी कौशिक
2 टिप्पणियां:
Bahut Khushi hui yeh khabar padh kar...
काश, अपने देश में ऐसे दो चार और गांव होते।
------
चोंच में आकाश समा लेने की जिद..
इब्ने सफी के मायाजाल से कोई नहीं बच पाया।
एक टिप्पणी भेजें