पर समाज की उस बुरी नज़र का क्या...जो उस अजन्मे बच्चे पर लग चुकी होती हैं, देश के दूर-दराज़ गाँओं में ही नहीं अपितु आज के आधुनिक समाज में या शहरों में भी ये कुकृत्य देखने को मिलता है, और...सबसे ज्यादा भ्रूण-हत्याएं इसलिए की जाती हैं..क्योंकि.....वो भ्रूण एक लड़की का है......
क्या किसी ने कभी सोचा है, कि माँ के गर्भ में जो अजन्मा बच्ची है .... उसमें भी एक जान है, कुछ इच्छाएं है, वो भी कुछ कहना चाहती है....
माँ !!!
क्या अपराध किया मैंने,
अभी तो जन्म न लिया मैंने !!
क्या मैं तेरी प्रीत नहीं ?
या मेरा होना रीत नहीं,
माँ, मैं भी तो, तेरे जैसी हूँ,
जैसी चाही थी, मैं वैसी हूँ !
क्या रक्त में है कोई भेद यहाँ,
या लड़की का होना पाप वहाँ,
क्या दुनिया बाहर की है इतनी बुरी,
या मन-उलझन में तू है घिरी,
माँ, देखो वो मेरा भाई है,
मैं भी उस जैसे खेलूंगी!
न जिद मैं करुँगी उस जैसा,
हर काम तेरा मैं कर दूंगी !!
मैं जिद न करूंगी खिलोनों की,
न गुड्डों की, न गुड़िया की,
पर माँ,
जन्म तू मुझको लेने दे,
आँगन में कुछ पल खेलने दे !!
मैं भी तो जीना चाहती हूँ,
माँ तुझको कहना चाहती हूँ,
माँ तुझको कहना चाहती हूँ....
सुर्यदीप "अंकित" त्रिपाठी - 5/2/2011
1 टिप्पणी:
काश आपकी ये भावना आज बेटे के लिए अंधे हुए लोगों के मन में जाग पाती तो बेचारी बेटियां इस सुन्दर संसार में कुछ साँस ले पाती :सुन्दर भावों se भरी पंक्तियाँ आभार
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