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शनिवार, 23 जुलाई 2011

आदर्श भल्ला जी की वाणी

     बचपन में कहानिया सुनने का बहुत शौक था,  उन्ही में से एक कहानी  फिर याद आती है, क्यों की मुझे शायद यह आज तक कई बार सुननी पड़ी है,  एक बार आप के साथ क्यों की यह कभी भी जीवित हो उठती है. एक राजा था राजपाठ  ठीक ठाक चल रहा था, चारो तरफ खुशहाली थी, खेत खलिहान भरे पुरे लहलहाते थे, खजाने अपार सम्पति से भरे पड़े थे. .........आज भी निकल रहे हैं.....  राजा बूढा हो चला था.  बस कमी थी तो सिर्फ एक.  और वो थी की राजा के कोई संतान नहीं थी.  दरबारी गन प्रजा जन, सभी बहुत चिंतित थे की आखिर राजा के बाद क्या होगा. 





         लेकिन राजा तो राजा था वह प्रजा को अच्छी तरह समझता था.  उसने अपनी वसीयत में आखरी इच्छा लिख कर रख छोड़ी थी.   समय आया राजा का निधन हुआ, वसीयत खोली गई. पढ़ी गई.  राजा की इच्छा थी की जो भी पहला व्यक्ति उसके राज्य में प्रवेश करे उसी को राज गद्दी का उत्तराधिकारी माना जाये.  सीमा पर पूरी तैनाती थी, सिपहसलार मन्त्रिगन सब नजर गडाये  बैठे थे, इतने में एक बाबा ने प्रवेश किया.

  अलख निरंजन,,,,,,,,,,,,, उनींदे पहरेदार उठ खड़े हुए,  बाबा को सादर महल में ले आये.बाबा ने कहा अरे भाई मुझे राजपाठ से क्या लेना देना, मुझे अपने रास्ते जाने दो भाई.......लेकिन राजा की वसीयत प्रजा का राजा के प्रति सम्मान ..........अन्ततोगत्वा बाबा को राज सिंहासन पर बैठा दिया गया.  
       दरबार सज गया बाबा को राज पाठ भार सोंप कर कहा  हूजूर हुकम कीजिये.........बाबा ने फरमान जारी किया जनता को हलवा पूरी का लंगर खिलाया जाय ,  पूरे राज्य में हलवे पूरी के शाही लंगर लग गए,, मौज मस्ती थी प्रजा बड़ी खुश थी अरबों का शाही खजाना ओर उस  शाही खजाने के माल की हलवा पूरी,....... मंत्री परेशान थे महाराज ओर कोई हुक्म........नहीं बस तुम हलवा पूरी बाँटते रहो.....महाराज का हुकम सर आँखों पैर............महाराज लोग नाकारा ओर बेकार होते जा  रहे हैं, कुछ तो कीजये.........नहीं बस तुम हलवा पूरी बाँटते रहो.........महाराज शाही खजाने खाली हो रहे हैं..............नहीं बस तुम हलवा पूरी बाँटते रहो..........
     खबर पडोसी राज्य तक पहुंची की जनता , प्रशासन , फौज, सभी सभी  हाथ पर हाथ धरे बठें हैं. पडोसी राजा ने सोचा यह अच्छा मौका है, ओर चढ़ाई कर दी,........... खुफिया खबर आई, पडोसी हमला कर रहा है....... मंत्री राजा के पास गये महराज  कुछ तो कीजये.........नहीं बस तुम हलवा पूरी बाँटते रहो .......बस हलवे में घी थोडा बढ़ा दो ......महराज सेना बेकार हो रही है........नहीं बस तुम हलवा पूरी बाँटते रहो.......बस हलवे में घी थोडा बढ़ा दो  महराज पडोसी राजा महल तक पहुँच गया है......  नहीं बस तुम हलवा पूरी बाँटते रहो महाराज आप गिरफ्तार होने वाले हैं... बाबा ने कहा ऐसा क्या....हमारा चिमटा..ओर कमंडल ले कर आओ  मंत्रियों ने सोचा शायद बाबा कुछ चमत्कार करेगा...आननं फानन में चिमटा कमंडल पेश किया गया बाबा ने कहा हमारी खडाऊं कहाँ हैं... ये रही महाराज.   अलख निरंजन.  हम चलते हैं.....


   बिलकुल ऐसा ही हुआ जब मैं 1973 कालिज मैं पढता था. मात्र सोलह साल का था    उपरी कहानी चरितार्थ होती नज़र आती थी...एक बाबा आये नाम था जय प्रकाश नारायण ...,,उन्हों ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया देशवासियों ने सोचा कुछ तो अच्छा होगा...  नतीजा क्या निकला उस सम्पूरण क्रांति में से निकल कर आये यह उत्पाद.  Morarji Desai, Atal Bihari Vajpayee, Lal Krishna Advani, Charan Singh,  Raj Narain, George Fernandes, आदि आदि  लालू मुलायम उसी सम्पूरण क्रांति  की बानगी हैं...... बाबा का एक चेला तो यहं तक कहता था क्यों की वो रेलवे यूनियन का नेता था की अगर हम किसी तरह स्टील मिल्स को कोयला सप्लाई रोक दें तो एक बार मिल की भट्ठी ठंडी होने के बाद छ महीने मैं पुनह शुरू हो पाती है, और हम भारत वर्ष की अर्थव्यवस्था को छ महीने पीछे ले जा सकेंगे,   
   दिल्ली के कौड़िया पुल ( यहाँ आपका थोडा सामान्य ज्ञान बढ़ा दूं  विश्व का सबसे पहला TOLL BRIDGE   for details  MY BLOG www.adarshbhalla.blogspot.com)   से दिखायी देता  पूरा पुरानी दिल्ली  स्टेशन माल गाड़ियों से जाम था रेल हड़ताल थी.....में सोचता था ये सरकार हाथ पर हाथ क्यों धरे बैठी है....क्यों नहीं डंडे मार कर यह स्टेशन खुलवाती.  .......लेकिन भोली भाली  जनता तो  बाबा के साथ थी.......मेरे दिल मैं ऐसे मौका परस्तों के लिए गुस्सा तो था लेकिन मैं कर भी क्या सकता था....

  वह बाबा जनता पार्टी को जनता द्वारा सत्ता थमा कर चल दिए.............थोड़ी रहत की साँस....... कोका कोला बंद करवा दी, चीनी दो रूपये किलो कहने को मिली लेकिन देश को दी गयी गरीबी एवं विकास के  बदले ....


कुछ ही बरस बीते थे ........साल  उन्नीस सौ नवासी आया   .एक और तथाकथित अति ईमानदार नेता का उद्भव हुआ................वी पी..........  नारा मिला...................जन मोर्चा...  और  हमे इस देश की जनता को......हलवे मैं क्या मिला मंडल .........आरक्षण...यह बाबा भी हमे विरासत में  दे गये ..............आरक्षण मांगते हिन्दुस्तानी..............रेल जलाते  विद्यार्थी....रेल रोकते....विभन्न समाजों के लोग........  दिल्ली का रास्ता रोकने,,,,,, दिल्ली की दूध सुब्ज़ी बंद करने वाले उनके पदचिन्हों पर चलने वाले लोग,,,...............अलख निरंजन........ये भी निकल लिए.......


फिर सब  इक्कठा हुए............
पहले बाबा के चेलो ने नयी जमात बनायीं ,जनता तो जनता का राज देने की बात दोहराई बी जे पी ( B भागो  J जनता P पकड़ेगी ) आयी..     ......... पुरानी बोतल में नयी शराब आई,,,,,,, देश  की जनता को हलवा पूरी दिखाई.......हलवा तो दूर की बात    जूतों में दाल बटने लगी.  .......


अभी पिक्चर बाकी है मेरे दोस्त....... सारे विश्व में महगाई जोरों पर थी...कोई रास्ता सुझाई नहीं देता था  न कोई हलवा दिखाने वाला था..  हाँ तरक्की थी, खुशहाली थी..भारत अपनी राह पर फिर से चलने लगा था.....विकास दर में चीन से आगे निकल रहा था....     फिर वही कहानी............लेकिन इस बार हलवा नहीं.......पौष्टिक हलवे के साथ उसे पचाने के लिए योग भी तो चाहिए...
कमी थी तो एक.................तरक्की पसंद परिवर्तन पसंद भारतीय की मानसिकता से खेलने वाले की......... और हलवा नहीं  इस बार तो थी विदेशी मुद्रा....वो भी चार सौ लाख करोड़ 



      लेकिन अब तक सोने की चिड़िया पर बहुत निगाहे लग चुकी हैं देश में ही बन्दर बाँट होने की गुंजाईश दिखने लगी ...ना वो बाबा रहे ...ओर ना वो भारत की जनता... बाबा भी हाईटेक.. एक के पीछे एक सौ बीस करोड़ लोग (ऐसा वे कहते हैं) दुसरे के पीछे वही उन्नीस तो तिहत्तर ~ उन्नीस सौ सतत्तर वाली मंडली  ............एक बाबा को... दुसरे बाबा की खुशहाली रास न आयी.... देश की जनता के एक आँख  लोकपाल और दूसरी आँख  भ्रष्टाचार से बंद कर,, हाथ में विदेशों में काले धन के नाम पर , अरबों रूपये के चुनावी हलवे परोस कर खुद भूखे बैठ कर न जाने क्या दिखाना चाहते थे ...पहले तो एक ही मंच से (आह्वान हुआ ) फिर रास्ते आलग मंजिल अलग अलग, सलाहकार अलग, लेकिन निगाहें प्रधान मंत्री के कुर्सी........भगवन ने मेरी छतीस साल पुरानी फ़रियाद सुनी.  ४ जून  २०११ मेरे एक पत्रकार मित्र ने रामलीला मैदान से फोन किया  सुबह के लगभग दो का वक्त था.....टी वी. खोला देश के संविधान में आस्था ना रखने वाले, तमाम भारत की समस्त जनता ( प्रजातंत्र  यह कैसे संभव हो सकता है) का स्वयम्भू प्रतिनिधि कहने वाले....पांच सौ बयालीस सांसदों को चोर कहने वाले...भाग क्यों रहे हैं......समझते देर ना लगी....अब भारत सरकार भी जाग चुकी है.... देश में अराजकता फैलाने वालों, अलगाववादियों ,,,,समानांतर सरकार खड़ी करने वालों.................के खिलाफ   


क्रमश ..................
आदर्श  भल्ला जी से प्राप्त ईमेल 

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